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भी सेठिया जैन अन्यमीला. (५) ऊर्ध्वरेणु-पाठ सएहसएिहया का एक ऊर्ध्वरेणु होता है।
(६) त्रसरेणु-आठ ऊर्वरेणु मिलने पर एक सरेणु होता है। ..१७ रथरेणु-आठ त्रसरेणु मिलने पर एक रथरेणु होता है ! ' (८ बालाग्र-आठ रथरेणु मिलने पर देवकुरुं उत्तरकुरु के मनुष्यों को एक बालाग्र होता है। । 5 +8 देवकरु उत्तरकुरु के मनुष्यों के आठ वालाग्र 'मिलने पर हरिवर्ष और रम्यकपर्प के मनुष्यों को एक बालाग्र होता है।'
(१० हरिबर्ष रम्यकवर्ष के मनुष्यों के आठ वालाग्रं मिलने पर हैमबत और हैरण्यवत के मनुप्यों का एक वालाग्र होता है। ' (११) हैमवत और हैरण्यवंत के मनुष्यों के आठ बालान से पूर्वविदेह और पश्चिमविदेह के मनुष्यों का एक 'वालाग्र होता है।' ' (१२) पूर्वविदेह और पश्चिम विदेह के मनुष्यों के आठ बालाने मिलने पर भरत और ऐरवत के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है।
(१३) लिक्षा-भरत और ऐरवत के पाठ वालाग्रं मिलने पर एक लिफा (लीख) होती है। . . . . . . . ' (१४) युका--आठ लिक्षाओं की एक युका होती हैं। ११५) यवमभ्य-पाठ यूकानों का एक यवमध्य होता है। (१६), अंगुल-श्रीठ यवमध्य का एक अंगुल होता है। (१०) पाद-छह अंगुलों का एकपाद (पैर कामध्य भाग) होता है। (१८) वितस्ति-बारह अंगुलों की एकवितस्तिया बिलांत होती है।
(१६) रनि-चौवीस अंगुलों की एक रनि (सुंडा हाथ) होती है। ' (२०) कुक्षि-अड़तालीस अंगुल की एक कुक्षि होती है।
(२१) दण्ड-छ्यानवे अंगुल का एक दण्ड होता है। इसी को "धनुष, युग, नालिका, अक्ष या मुसल कहा जाता है। । (२२) गव्यूति-दो हजार धनुष की गव्यूति (कोस) होती है। ..(२३) योजन-चार गव्यूति का एक योजन होता है। (अनुयोगद्वार सू०.१३३ पृ० १६०-१६२).(प्रवचन सद्विार २५४ गा.१३६टी)