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श्री जैन सिद्धान्त बोलः संग्रह छठा भाग हर--सूयगडांग सूत्र के तेईस अध्ययन
सूयगंडांग सूत्र दूसरा अङ्ग सूत्र है । इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन है और द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन हैं। तेईस'अंध्ययन के नाम इस प्रकार हैं__(१) समयाध्ययन (२) चैतालीयाध्ययन (३) उपसर्गाध्ययन (४) स्त्रीपरिज्ञाध्ययन (५)-नरकविभक्त्यध्ययन (६) श्रीमहावीर स्तुति (७) कुशीलपरिभाषा (८) वीर्याध्ययन (8)-धर्माध्ययन (१०)समाधिअध्ययन (११) मार्गाध्ययन (१२) समवसरणाध्ययन (१३) याथातथ्याध्ययन-१४) ग्रन्थाध्ययन (१५) आदानीयाध्ययन (६) गाथाध्ययन । ६१७) पौण्डरीकाध्ययन (१८) क्रियास्थानाध्ययन(१६) आहारपरिज्ञाध्ययन-(२० प्रत्याख्यानाध्ययन : (२१) आचारश्रुताध्ययन (२२) आर्द्रकाध्ययन (२३) नालन्दीयाध्ययन ।। . . . . .
इसी ग्रन्थ के चौथे भाग में बोल नं. ७७६ में ग्यारह अगों का विषय वर्णन है-उसमें सूयगडांग सूत्र का विषय भी सक्षेप में दिया गया है। . . " " : , .. .. (समवायाग २३) .६२४ - क्षेत्र परिमाण के तेईस भेद . . (१) सूक्ष्मपरमाणु--पुद्गल द्रव्य के सबसे छोटे अंश को, जिसका दूसरा भाग न हो सके, सूक्ष्मपरमाणु कहते हैं।
(२) व्यावहारिक परमाणु-अनन्तानन्त सूक्ष्म पुद्गलों का एक व्यावहारिक परमाणु, होता है। --
. (३) उमएहसण्हिया-अनन्त व्यावहारिक परमाणुओं का एक उसएहसपिहया (उत्श्लक्ष्ण रक्षणिका) नामक परिमाण होता है।
(४) सएहसपिहया-आठ उसएहसरिहया मिलने से एक ' 'सएहमरिहया (श्लक्ष्ण श्लक्षिणका): नाम. का परिमाण होता है।