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श्री-सेठिया जैन ग्रन्थमाला .. इस प्रकार कुल मिलाकर २४० विकार हो जाते हैं। '..
(ठा० ५ उ०३ सू० ४४३) (ठाणाग १ सू० ४७) (ठाणाग ५ उ०१ सू० ३६०) (ठाणाग ८३०३ सू० ५६६) (पन्नवणा पद १५ सू० २६३) (पच्चीस बोल का थोकहा- १२ वा बोल। (तत्वार्थ सू.९ अ० २ सू० २१) .. चौबीसवां बोल संग्रह ६.२७-गत उत्सर्पिणी के चौबीस तीर्थङ्कर . गत उत्सर्पिणी काल में जम्बूद्वीप के भरते क्षेत्र में चौबीस तीर्थङ्कर हुए थे। उनके नाम नीचे लिखें अनुसार हैं .. ___ (१) केंवलज्ञानी (२) निर्वाणी (३) सागर जिन (४) महायश (५) विमल (६) नाथसुतेजा (सर्वानुभूति) (७) श्रीधर (८ दत्त (6) दामोदर (१०) सुतेज. (११) स्वामिजिन (१२) शिवांशी (मुनिसुव्रत) (१३)सुमति,(१४) शिवगति (१५) अबाध अस्ताग) (१६) नाथनेमीश्वर (१७) अनिल (१८) यशोधर. (१६) जिनकृतार्थ (२०) धर्मीश्वर (जिनेश्वर) (२१) शुद्धमेति.(२२) शिवकरजिन (२३) स्यन्दन (२४), सम्प्रतिजिन ।'
(प्रवचनसारोद्धार द्वार ७ गा २८८-२६०) ६.२८--ऐरवत क्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी
के चौवीस तीर्थङ्कर :- वर्तमान अवसर्पिणी में ऐरखत क्षेत्र में चौबीस तीर्थकर हुए हैं। उनके नाम नीचे लिखे अनुसारा है
१ चन्द्रानन २ सुचन्द्र ३ अग्निसेन- ४,नंदिसेन (आत्मसेन) १५ ऋषिदिन्नः६ व्रतधारी ७श्यामचन्द्र (सोमचन्द): युक्तिसेन (दीर्घबाहु दीर्घसेन) अजितसेन (शतायु)१० शिवसेन सत्यसेन, सत्यकि) ११ देवशर्मा (देवसेन). १२ निक्षिप्तशस्त्र (श्रेयांस) १३