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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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द्रव्यों की ही की जाती है।
(३) विगय-शरीर में विकृति उत्पन्न करने वाले पदार्थों को विगय कहते हैं। दूध, दही, घी, तेल और मिठाई आदि सामान्य विगय हैं। इन पदार्थों का जितना भी त्याग किया जा सके,उतने का करे अथवा मर्यादा करे कि आज मैं अमुक पदार्थ काम में न लँगा अथवा अमुक पदार्थ इतने वजन से अधिक काम में न लूँगा।
मधु और मक्खन दो विशेष विगय हैं। इन दोनों का निष्कारण उपयोग करने कात्याग करे और सकारण उपयोग की मर्यादा करे।
मद्य और मांस ये दो महाविगय हैं। श्रावक को इन दोनों का सर्वथा त्याग करना चाहिए।
(४)पनी-पाँव की रक्षा के लिए जो चीज पहनी जाती है,जैसे जूते, मोजे, खड़ाऊ, बूट आदि इनकी मर्यादा करे।
(५) ताम्बूल- जो वस्तु भोजन करने के बाद मुखशद्धि के लिये खाई जाती है उनकी गणनाताम्बूल में है,जैसे-पान,सुपारी, इलायची, लोंग,चूरन आदि । इनके विषय में मर्यादा करे।
(६) वस्त्र-पहनने, ओढने के कपड़ों के लिए यह मर्यादाकरे कि अमुक जाति के इतने वस्त्रों से अधिक वस्त्र काम में न लूंगा।
(७) कुसुम-सुगन्धित पदार्थ,जैसे फूल,इत्र व सुगन्धि आदि के विषय में मर्यादा करे।
(८)वाहन- हाथी,घोड़ा,ऊँट,गाड़ी ताँगा, मोटर, रेल,नाव, जहाज आदि सवारी के साधनों के, चाहे वे साधन स्थल के हों अथवा जल या आकाश के हो,यह मर्यादा करे कि मैं अमुक वाहन के सिवाय आज और कोई वाहन काम में न लँगा।
(8) शयन- शय्या, पाट, पाटला, पलंग, बिस्तर आदि के विषय में मर्यादा करे।
(१०) विलेपन- शरीर पर लेपन किये जाने वाले द्रव्य, जैसे