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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह पांचवां भाग
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बारहवें स्वम में विमान और भवन दो शब्द रखे गये हैं। जो जीव स्वर्ग से आकर तीर्थङ्कर या चक्रवर्ती होते हैं उनकी माता विमान देखती है और जो जीव नरक से निकल कर तीर्थङ्कर या चक्रवर्ती होते हैं उनकी माता विमान की जगह भवन देखती है ।
इन चौदह महास्वनों में से कोई भी सात स्वप्न वासुदेव की माता देखती है । बलदेव की माता चार स्वप्न देखती है और मांडलिक राजा की माता एक स्वप्न देखती है। ( भगवती शतक १६ उद्देशा ६) (हरिभद्री यावश्यक) (ज्ञाता मत्र अध्ययन ) (कल्प सुन स्वप्नवाचनाधिकार)
८३१ - श्रावक के चौदह
नियम
श्रावक को प्रतिदिन प्रातः काल निम्न लिखित चौदह नियमों का चिन्तन करना चाहिए। जो श्रावक इन नियमों का प्रतिदिन विवेक पूर्वक चिन्तन करता है तथा इन नियमों के अनुसार मर्यादा कर उसका पालन करता है, वह सहज ही महालाभ प्राप्त कर लेता है । वे नियम ये हैं
सचित्त दव्व विग्गई, पन्नी ताम्बूल वत्थ कुसुमेसु । वाहण सयण विलेवण, बम्भदिसि नाहय भत्तेसु ॥ अर्थात् - (१) सचित्त वस्तु (२) द्रव्य (३) विगय (४) जूते (५) पान (६) वस्त्र (७) पुष्प (८) वाहन (६) शयन (१०) विलेपन (११) ब्रह्मचर्य (१२) दिक् (दिशा) (१३) स्नान (१४) भोजन ।
(१) सचित्त - पृथ्वी, पानी, वनस्पति, फल, फूल, सुपारी, इलायची, बादाम, धान्य - बीज आदि सचित्त वस्तुओं का यथाशक्ति त्याग करे अथवा यह परिमाण करे कि आज मैं इतने द्रव्य और इतने वजन से अधिक उपयोग में न लूँगा ।
(२) द्रव्य - जो पदार्थ स्वाद के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से तय्यार / किये जाते हैं, उनके विषय में परिमाण करे कि आज मैं इतने द्रव्य से अधिक उपयोग में न लूँगा । यह मर्यादा खान पान विषयक