________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
२५
wwman
केसर, चन्दन,तेल, साबुन,सेंट,अञ्जन, मञ्जन आदि के सम्बन्ध में प्रकार (गणन) और वजन की मर्यादा करे।
(११)ब्रह्मचर्य-स्थूल ब्रह्मचर्य यानी स्वदार संतोष,परदार विरमण व्रत अङ्गीकार करते समय जो मर्यादा रखी है, उसका भी यथाशक्ति संकोच करे। पुरुष पत्नी संसर्ग के विषय में और स्त्री पति संसर्ग के विषय में त्याग अथवा मर्यादा करे।
(१२)दिक् (दिशा)-दिक परिमाण व्रत स्वीकार करते समय आवागमन के लिये मर्यादा में जो क्षेत्र जीवन भर के लिए रखा है, उस क्षेत्र का भी संकोच करे तथा यह मर्यादा करे कि आज मैं इतनी दूर से अधिक दूर ऊँची, नीची या तिर्की दिशा में गमनागमन न करूँगा।
(१३) स्नान- देशस्नान या सर्व स्नान के लिये भी मर्यादा करे कि आज इससे अधिक न करूंगा। शरीर के कुछ भाग को धोनादेशस्नान है और सबभाग को धोना सर्वस्नान कहा जाता है।
(१४) भत्ते- भोजन, पानी के सम्बन्ध में भी मर्यादा करे कि मैं आज इतने परिमाण से अधिक न खाऊँगा और न पीऊँगा।
उपरोक्त चौदह नियम देशावकाशिक व्रत के अन्तर्गत हैं। इन नियमों से व्रत विषयक जो मर्यादा रखी गई है उसका संकोच होता है और श्रावकपना भी सुशोभित होता है। __ कहीं कहीं इन चौदह नियमों के साथ असि, मसि और कृषि ये तीन और भी मिलाये गये हैं । ये तीनों कार्य आजीविका के लिये किये जाते हैं। आजीविका के लिये जो कार्य किये जाते हैं उनमें से पन्द्रह कर्मादान का तो श्रावक को त्याग कर ही देना चाहिये,शेष कार्यों के विषय में भी प्रतिदिनमर्यादा करनी चाहिये।
(क) असि-शस्त्र आदि के द्वारा परिश्रम करके अपनी आजीविका की जाय उसे असिकर्म कहा जाता है।