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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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वस्तुओं के अवान्तर अध्यायों को चूलिकावस्तु कहते हैं। __ उत्पादपूर्व में दस वस्तु और चार चूलिकावस्तु हैं। अग्रायणीय पूर्व में चौदह वस्तु और वारह चूलिकावस्तु हैं । वीर्यप्रवाट पूर्व में आठ वस्तु और आठ चूलिकावस्तु हैं। अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व में अठारह वस्तु और दस चूलिकावस्तु हैं । ज्ञानप्रवाद पूर्व में बारह वस्तु हैं। सत्यप्रवाद पूर्व में दो वस्तु हैं। प्रात्मप्रवाद पूर्व में सोलह वस्तु हैं। कर्मप्रवाद पूर्व में तीस वस्तु हैं । प्रत्याख्यान पूर्व में बीस । विद्यानुभवाद पूर्व में पन्द्रह । अवन्ध्य पूर्व में बारह। प्राणायु पूर्व में तेरह। क्रियाविशाल पूर्व में तीन। लोक विन्दुसार पूर्व में पच्चीस । चौथे से आगे के पूर्वो में चूलिकावस्तु नहीं हैं।
. (नन्दी, सूत्र ५७) (समवायांग १४वाँ तथा १४ज्वाँ) ८२४-ज्ञान के अतिचार चौदह
सूत्र,अर्थ या तदुभय रूप आगम को विधिपूर्वक न पढ़ना अर्थात् उसके पढ़ने में किसी प्रकार का दोष लगाना ज्ञान का अतिचार दोष है। वह चौदह प्रकार का है
(१)वाइद्धं-व्याविद्ध अर्थात् अक्षरों को उलट पलट कर देना। जिस प्रकार माला के रत्नों को उलट पलट जोड़ने से उसका सौन्दर्य नष्ट हो जाता है उसी प्रकार शास्त्र के अक्षरों या पदों को उलट फेर कर पढ़ने से शास्त्र की सुन्दरता नहीं रहती है, तथा अर्थ का बोध भी अच्छी तरह नहीं होता, इस लिए पदया अक्षरों को उलट पलट कर पढ़ना व्याविद्ध नाम का अतिचार है।
(२) वच्चामेलियं- व्यत्यानंडित अर्थात् भिन्न भिन्न स्थानों पर आए हुए समानार्थक पदों को एक साथ मिला कर पढ़ना। जैसे भिन्न भिन्न प्रकार के अनाज,जो आपस में मेल नखाते हो, उन्हें इकडे करने से भोजन बिगड़ जाता है, उसी प्रकार शास्त्र के भिन्न भिन्न पदों को एक साथ पढ़ने से प्रथे विगड़ जाता है।