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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह पांचवां भाग
(५) ज्ञानप्रवादपूर्व- इस में मति ज्ञान आदि ज्ञान के पाँच भेदों का विस्तृत वर्णन है । इस में एक कम एक करोड़ पद हैं।
(६) सत्यप्रवादपूर्व- इस में सत्य रूप संयम या सत्य वचन का विस्तृत वर्णन है। इस में छः अधिक एक करोड़ पद हैं।
(७)आत्मप्रवादपूर्व-इस में अनेक नय तथा मतों की अपेक्षा श्रात्मा का प्रतिपादन किया गया है। इसमे छब्बीस करोड़ पद हैं।
(८) कर्मप्रवादपूर्व-जिस में आठ कर्मों का निरूपण प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश आदि भेदों द्वारा विस्तृत रूप से किया गया है। इस में एक करोड़ अस्सी लाख पद हैं।
(8) प्रत्याख्यान प्रवादपूर्व- इस में प्रत्याख्यानों का भेद प्रभेद पूर्वक वर्णन है। इस में चौरासी लाख पद हैं।
(१०) विद्यानुभवादपूर्व-इस पूर्व में विविध प्रकार की विद्या तथा सिद्धियों का वर्णन है। इस में एक करोड़ दस लाख पद हैं।
(११) अवन्ध्यपूर्व- इस में ज्ञान, तप, संयम आदिशुभ फल वाले तथा प्रमाद आदि अशुभफल वाले अवन्ध्य अर्थात् निष्फल न जाने वाले कार्यों का वर्णन हैं । इस में छब्बीस करोड़ पद हैं।
(१२) प्राणायुप्रवादपूर्व- इस में दस प्राण और आयु आदि फा भेद प्रभेद पूर्वक विस्तृत वर्णन है। इस में एक करोड़ छप्पन लाख पद हैं।
(१३) क्रियाविशालपूर्व- इस में कायिकी, श्राधिकरणिकी आदि तथा संयम में उपकारक क्रियाओं का वर्णन है। इस में नौ करोड़ पद हैं।
(१४) लोकबिन्दुसारपूर्व-लोक में अर्थात् संसार में श्रुतज्ञान में जोशास्त्र विन्दु की तरह सब से श्रेष्ठ है, वह लोकबिन्दुसार है। इसमें साढ़े बारह करोड़ पद हैं।
पूर्वो में वस्तु- पूर्षों के अध्यायविशेषों को वस्तु कहते हैं।