________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाचवा भाग 283 पगईइ मंदावि भवंति एगे, डहरावि अजे मुअबुद्धोववेत्रा / आयारमंता गण सुहि अप्पा,जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा // 3 // जे भावि नागं डहरंति नच्चा, पासायए से अहिआय होइ / एवायरियपि हु हीलयंतो, निमच्छई जाइपहं खु मंदो // 4 // आसीविसो वावि परं सुरुडो, किं जीवनासाउ परं नु कुज्जा / आयरिअपाया पुण अप्पसना,अयोहिआसायण नत्थि मुक्खो।।५।। जो पावगं जलियमवक्कमिज्जा, आसीविसं वावि हु कोवइज्जा / जोवा विसं खायइ जीविही, एसोवयासायणया गरूणं / / 6 / / सिआ हु से पाबय नोडहिज्जा, पासीविसोवा कुवियोन भक्खे। सिमा विसं हालहलं न मारे, न भावि सुक्खो गुरुहीलणाए॥ 7 // जो पव्वयं सिरसा भित्तु मिच्छे, मुत्तं व सीहं पडियोहइज्जा / जो वादए सत्तिअग्गे पहारं,एसोवमाऽऽसायणया गरूणं // 8 // सिपाहु सीसेण गिरि पिभिंदे,सिधा हु सीहो कुविनोन भक्खे। सिआन भिदिज्ज वसतिग्गं,न आवि मुस्वो गरुहीलणाए॥६॥ आयरिशपाया पुरण अप्पसन्ना, अबोहि आसायण नत्थि मोक्खो। तम्हा अणावाहसुहाभिकरवी,गुरुप्पसायाभिमुहो रमिज्जा॥१०॥ जहाहिअग्गी जलणं नमसे, नाणाहुईमंतपयाभिसित्तं / एवायरियं उपचिहइज्जा, अणंतनाणोवगो वि संतो॥११॥ जस्संतिए धम्मपयाई सिक्खे, तस्संतिए वेणइयं पउजे / सकारए सिरसा पंजलीओ,कायग्गिरा भो मणसा अनिच्च // 12 // लज्जा दया संजम बंभचेरं, कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं / जे मे गुरू सययमणुसासयंति, तेऽहं गुरू सययं पूजयामि॥ 13 // जहा निसंते तवणचिमाली, पभासइ केवल भारहं तु / एवायरिओ सुअसीलबुद्धिए, विरायई सुरमज्झेव इंदो // 14 // जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो, नक्वत्ततारागण परिवुडप्पा / खे सोहई वियले अब्भमुक्फे, एवं गणी सोहइ भिक्खुमझे // 15 //