________________ 482 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला संसप्पगा य जे पाणा अदुवा' पक्विणो रवचरन्ति // 7 // अदु कुचरा उपचरन्ति गामरक्वा य सत्तिहत्था य / अदु गामिया उवसग्गा इत्थी एगइया पुरिसा य // 8 // इहलोइयाइं परलोइयाई भीमाइं अणेगरूवाई / अवि सुभिदुन्भिगन्धाइं सदाइं अणेगरूवाई // 6 // . अहियासए सया समिए फासाइं विरूवरूवाई / अरई रई अभिभूय रीयइ माहणे अपहुवाई // 10 // स जणेहिं तत्थ पुच्छिसु एगचरावि एगया राओ / अव्वाहिए कसाइत्था पेहमाणे समाहिं अपडिन्ने // 11 // अयमंतरंसि को इत्थ ? अहमंसित्ति भिक्खु आरह / अयमुत्तमे से धरमे, तुसिणीए कसाइए झाइ ! // 12 // जंलिप्पेगे पर्वयन्ति सिसिरे मारुए पवायन्ते / तसिप्पेगे अणगारा हिमवाए निवायमेसन्ति // 13 // संघाडीओ पवेसिस्सामो एहा य समादहमाणा / पिहिया व सखामो अदुक्खं हिमगसंफासा // 14 // तसि भगवं अपडिन्ने अहे विगडे अहियासए / दविए निखम्म एगया राम्रो हाएति भगवं समियाए // 15 // एस विही अणुकन्तो माहणेण मईया / वहुसो अपडिएणेण भगवया एवं रीयन्ति // 16 / / दशवकालिक अध्ययन : उद्देशा 1 (ोल नम्बर 877) थंभा व कोहा व मयप्पमाया, गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे / सो चेव उ तस्स अभूइभावो, फलं व कीअस्स वहाय होइ // 1 // जे आवि मंदित्ति गुरुं विइत्ता, खहरे इमे अप्पमुमति नच्चा / हीलंति मिच्छं पडिवजमाणा, करंति आसायण ते गुरूणं॥२॥