________________ onr owwwmorammm श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाचवा भाग 481 womrom onwr wrrrrrrrrrr ~ anmom arror जं किं चाहारपाणगं घिविहं, खाइमसाइम परेसिं लद्धं / जो तं तिविहेण नाणुकपे, मणवयकायमुसंवुडे जे स भिक्खू // 12 / / आयामगं चेव जवोदणं च, सीयं सोवीरनवोदगं च। नो हीलए पिंड नीरसं तु, पंतकुलाणि परिवएस भिवखु // 13 // सहा विविहा भवंति लोए, दिव्या माणुसया तहा तिरिच्छा। भीमा भयभेरवा उसला, जो सुच्चा ण विहिज्मईस भिक्ख // 14|| वार्य विविहं समिञ्च लोए, सहिए खेयाणुगए अ कोविषप्पा / पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अविहेडए स भिक्खु // 15 // असिप्पजीवी अगिहे अमिचे, जिइंदिओ सव्वलो विप्पमुक्के / अणुक्कसाई लहु अप्पभक्खी, चिच्चा गिह एगचरेस भिक्खू॥१६॥ आचारांग श्रुतस्कंध 1 अ०६ उद्देशा२ ' (बोल नम्वर 874) चरियासणाई सिज्जाओ एगइयाओ जालो बुइयायो / आइक्स्व ताई सयणासणाई जाई सेवित्था से महावीरे // 1 // श्रावेसणसभापवासु पणिय सालासु एगया वासो / अदुवा पलियठाणेस पलालपुजेसु एगया वासो // 2 // आगन्तारे आरामागारे तह य नगरे व एगया बासो / ससाणे सुण्णगारे वा रुक्खमूले व एगया वासो // 3 // एएहिं मुणी सयणेहिं समणे आसि पतेरसवासे / राई दिवंपि जयमाणे अपमचे समाहिए झाइ // 4 // णिपि नो पगामाए, सेवइ भगवं उहाए / जग्गावइ य अप्पाणं ईसिं साई य अपडिन्ने // // संबुज्झमाणे पुणरवि आसिंह भगवं उहाए निक्वम्म एगया राओ वहि चंकमिया मुहुत्तागं // 6 // सयणेहिं तत्थुवसग्गा भीमा आसी अणेगरूवा य /