________________ 460 भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला उत्तराध्ययन अध्ययन 15 (बोल नम्बर 862) % 3D मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्म, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने / संथवं जहिज्ज अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू॥१॥ राअोवरयं चरिज्ज लादे, विरए वेदवियाऽऽयरक्खिए / पन्ने अभिभूय सम्वदंसी, जे कम्हिवि न मच्छिए स भिक्खू // 2 // अक्कोसवहं विदित्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निच्चमायगुचे / अव्वग्गमणे असंपहिहे,जो कसिणं अहिआसएस भिक्खू // 3 // पंतं सयणासणं भइत्ता, सीउण्डं विविहं च दंसमसगं / अव्वग्गमणे असंपहिहे, जो कसिणं अहिआसए स भिक्खू // 4 // नो सक्कियमिछई न प्रश्र, नोवि य वंदणगं कुमओ पसंसं / से संजए सुव्वए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू // 5 // जेण पुणो जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई। नरनारिं पयहे सया तवस्सी, न यकोऊहलं उवेइ स भिक्खू॥६॥ छिन्नं सरं भोमं अंतलिक्वं, मुविणं लक्खणं दंड वत्थुविज्ज। अङ्गविगारं सरस्सविजयं,जो विज्जाहिं न जीवई स भिक्खू // 7 // मंतं मूलं विविहं विज्जचिंतं, वमणविरेयणधूमनित्तसिणाणं / आउरे सरणं तिगिच्छियंच,तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू // 8 // खत्तियगणउग्गरायपत्ता, माहणभोई य विविहा य सिप्पिणो। नो तेसिं वयइ सिलोगपत्रं, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू // 6 // गिहिणो जे पन्चइएण दिहा, पव्वअएणइ व संथुया हविज्जा। तेसिं इहलोयफलहयाए, जोसंथवं न करेइ स भिक्खू // 10 // सयणासपपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसिं / भदए पडिसेहिए नियंठे, जे तत्थ ण पोसई स भिक्खू // 11 //