________________ 170 भी सेठिया जैन प्रन्यमाला ~~~~ ~ wwwwwwww ammmmmmm जो इन्द्रियों के विषय में आसक्त होकर रस लोलुप बन जायेंगे वे उन आसक्त घोड़ों की तरह दुखी होंगे और पराधीनपने से दुःख भोगेंगे। जो पोड़े उन पदार्थों में मासक्त नहीं हुए वे स्वतन्त्रता पूर्वक जंगल में आनन्द से रहे। इसी प्रकार जो साधु साध्वी इन्द्रियों के विषय में आसक्त नहीं होते वे इस लोक में मुखी होते हैं और अन्त में मोक्ष सुख को प्राप्त करते हैं। इसलिये इन्द्रियों के विषय में आसक्त नहीं होना चाहिए। (18) सुसुमा और चिलातीपुत्र की कथा अठारहवॉ सुंमुमा ज्ञात अध्ययन- लोभ से अनर्थ की प्राप्ति होती है / इसके लिए इस अध्ययन में संसमा का दृष्टान्त दिया है। __ राजगृह नगर में धन्ना नाम का एक सार्थवाह रहता था। उसके भद्रा नाम की भार्या थी जिससे पॉच पुत्र भोर सुसमा नामक एक पुत्री उत्पन्न हुई। चिलात नाम कादासपुष उस लड़की को खेलाया करता था। किन्तु साथ खेलने वाले दूसरे बच्चों को वह अनेक प्रकार से दुःख देता था। वे अपने माता पिता से इसकी शिकायत करते थे / इन बातों को जान कर धन्ना सार्थवाद ने उसे अपने घर से निकाल दिया / स्वच्छन्द बन कर वह चिलात सातों व्यसनों में भासक्त होगया। नगरजनों से तिरस्कृत होकर वह सिंह गुफा नाम की चोर पल्ली में चोर सेनापति विजय की शरण में चला गया। उसके पास से सारी चोर विद्याएं सीख ली और पाप फार्य में अति निपुण होगया। कुछ समय पश्चात् विजय चोर की मृत्यु होगई। उसके स्थान में चिलात को चोर सेनापति नियुक्त किया। एक समय उस चिलात चोर सेनापति ने अपने पॉच सौ चोरों से फसाफि चलो-रामगृह नगर में चल कर धन्ना सार्थवाह के घर को लूटे / लूट में जो धन भावे वह सब तुम रख लेना और सेठ