________________ भीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचो भाग 461 (17) अश्वों का दृष्टान्त सतरहवाँ 'भश्वज्ञात' अध्ययन- इन्द्रियों को वश में न करने से अनर्थ की प्राप्ति होती है। यह बतलाने के लिए इस अध्ययन में अश्वों का दृष्टान्त दिया गया है। हस्तिशीर्षनाम के नगर में कनककेतु नाम का राजा राज्य करता था। उस नगर में बहुत से व्यापारी रहते थे। एक समय जहाज में माल भर कर वे समुद्र में यात्रा कर रहे थे। दिशा की भूल हो जाने से वे कालिक नाम के दीप में पहुँच गए। वहाँ सुवर्ण और रनों की खानें थीं और उत्तम जाति के अनेक प्रकार के विचित्र घोड़े थे। वे मनुष्यों की गन्ध सहन नहीं कर सकते थे इसलिए उन व्यापारियों को देखते ही वे बहुत दूर भाग गए। सोने और रनों से जहाज को भरकर वेव्यापारीवापिस अपने नगर में भागए। वहाँ के राजा कनककेतु के पूछने पर उन व्यापारियों ने आश्चर्यकारक उन घोड़ों की हकीकत कही। राजा ने उन घोड़ों को अपने यहाँ मंगाने की इच्छा से उन व्यापारियों के साथ अपने नौकरों को भेजा। वे नौकर अपने साथ बहुत से उत्तम उत्तम पदार्थ लेते गए और घोड़ों के रहने के स्थान पर उन सुगन्धिन चीजों को विखेर दिया और स्वयं छिप कर एकान्त में बैठ गए। इसके बाद घूमते फिरते वे घोड़े वहाँमाए। उनमें से कितनेक घोड़े उनसगन्धित पदार्थों में आसक्त हो गए और कितनेफ घोड़े उनमें आसक्त न होते हुए दूर चले गए। जो घोड़े उन सुगन्धित पदार्थों में श्रासक्त होगए उनको उन नौकरों ने पकड़ लिया और हस्तिशीर्ष नगर में राजा के पास ले आए। राजा ने अश्वशिक्षकों के पास रख कर चन घोड़ों को नाचना कूदना आदि सिखा कर विनीत बनाया। यह दृष्टान्त देकर साधु साध्वियों को उपदेश दियागया कि