________________ Avvv श्री जैन सिदान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग 471 mmmmmmm की पुत्री सुसमा बालिका को मैं रखेंगा। ऐसा विचार कर उन्होंने धन्ना साथेवाह के घर डाका डाला। बहुत सा धन और सुसमा बालिका को लेकर वे चोर भाग गये। अपने पाँच पूत्रों को तथा कोटवाल और राजसेवकों को साथ लेकरधना सार्थवाह ने चोरों का पीछा किया / चोरों से धन लेकर राजसेवक तो वापिस लौट गये किन्तु धन्ना और उसके पाँचों पुत्रों ने सुसमा को लेने के लिए चिलात का पीछा किया। उनको पीछे आता देख कर चिलात थक गया और सुंममा को लेकर भागने में असमर्थ होगया। इस लिए तलवार से सुंसमा का सिर काट कर धड़ को वहीं छोड़ दिया और सिर हाथ में लेकर भाग गया। जंगल में दौड़ते दौड़ते उसे बड़े जोर से प्यास लगी। पानी न मिलने से उसकी मृत्यु होगई। धन्ना सार्थवाह और उसके पाँचों पुत्र चिलात चोर के पीछे दौड़ते दौड़ते थक गए और भूख प्यास से व्याकुल होकर वापिस लौटे। रास्ते में पडे हुए सुंसुमा के मृत शरीर को देख फर वे अत्यन्त शोक करने लगे। ये सब लोग भूख और प्यास से घबराने लगे तब धन्ना सार्थवाह ने अपने पाँचों पुत्रों से कहा कि मुझे मार डालो और मेरे मांस से भूख को और खून से तृषा को शान्त कर राजगृह नगर में पहुँच जाभो / यह वात उन पुत्रों ने स्वीकार नहीं की। वे कहने लगे- भाप हमारे पिता हैं। हम आपको कैसे मार सकते हैं ? तब कोई दूसरा उपाय न देख कर पिता ने कहा कि संसमा तो मर चुकी है। अपने को इसके मांस और रुधिर से भूख और प्यास बुझा कर राजगृह नगर में पहुँच जाना चाहिए / इस बात को सबने स्वीकार किया और वैसा ही करके वे राजगृहनगर में पहुंच गये। * इस कथन से यह प्रकट होता है कि धन्ना सार्थवाह जैन नहीं था किन्तु मजैन था / भगवान् महावीर के धर्मोपदेश से जैन साधु बन कर सुगति को प्राप्त हुमा /