________________ भी जैन सिदान्त बोल संग्रह, पांचो भाग 115 खादिष्ट भी लगते हैं किन्तु उनका परिणाम दुःखदायी होता है और भकाल में जीवन से हाथ धोना पड़ता है। इसलिए तुम सबलोग नन्दी वृक्ष के फलों को न खाना भौर यहाँ तक कि उनकी छाया में भी मत बैठना / दूसरे वृक्षों के फल दीखने में तो मुन्दर नहीं हैं किन्तु उनका परिणाममुन्दर है। उनका स्वेच्छानुसार उपभोग कर सकते हो। ऐसाफाकर उन सबलोगों के साथ धन्नासार्थवाह ने उस अटवी में प्रवेश किया। कितनेक लोगों ने घना सार्थवाह के कथनानुसार नन्दी वृक्षों के फलों को नहीं खाया और उनकी बाया से भी दूर रहे। इसलिए तत्काल तो वे मुखी नहीं हुए किन्तु अन्त में बहुत सुखी हुए। कितनेक लोगों ने धन्ना सार्थवाह के वचनों पर विश्वास न करके नन्दीवृक्षों के सुन्दर फलों को खाया और सनकी छाया में बैठ कर आनन्द उठाया। इससे तत्काल तो उन्हें सुख प्राप्त हुआ किन्तु पीछे उनका शरीर भयंकर विष से व्याप्त होगया और अकाल में ही मृत्यु को प्राप्त हुए। इसी तरह जो पुरुष नन्दी फलों के समान पाँच इन्द्रियों के विषयों कात्याग करेंगे उनको मोक्ष मुख की प्राप्ति होगी। जो लोग नन्दी वृक्षों के समान इन्द्रियों के विषयसुख में भासक्त होवेंगे वे अनेक प्रकार के दुःन भोगते हुए संसार में परिभ्रमण करेंगे। _इसके पश्चात् वह पन्ना सार्थवाह अहिच्छत्रा नगरी में गया। अपना माल बेच कर बहुत लाभ उठाया और वहाँ से वापिस माल भर कर चम्पा नगरी में भागया। बहुत वर्षों तक संसार मुख भोगने के पश्चात् धर्मघोष मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। प्रव्रज्या का पालन कर देवलोक में गया और वहाँ से चव कर महाविदेश क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष पद प्राप्त करेगा।