________________ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला पास प्रव्रज्या अङ्गीकार कर ली। अपने धर्माचार्य श्रीथावच्चापुत्र अन. गार की आमा लेझरशुक निम्रन्थ अपने एक हजार शिष्यों सहित अलग विहार करने लगे। कुछ समय पश्चात् थावच्चापुत्र मनगार को केवलज्ञान उत्पन्न होगया और वे मोक्ष में पधार गये। __ एक समय विहार करते हुए शुरु निग्रंन्ध सेलकपुर पारे / शैलक राजा ने अपने पुत्र मण्डूक को राज सिंहासन पर बिठा कर शुफ निग्रन्थ के पास पंथक प्रादि 500 मन्त्रियों सहित दीक्षा अङ्गीकार कर ली और विचरने लगे। शुक निर्ग्रन्थ की याज्ञा अनुसार शैलक राजर्षि पंथफ आदि 500 शिष्यों सहित अलग विहार करने लगे। कुछ काल बाद शुक निर्ग्रन्थ को फेवलज्ञान उत्पन्न हो गया और वे मोक्ष पधार गये। ग्रामानुग्राम विहार कर धर्म का उपदेश करते हुए शैलक राजर्पि के शरीर में पित्त ज्वर की बीमारी हो गई। सेलफपुर के राजा मण्डूक की आज्ञा लेकर वे उसकी दानशाला में ठहर गये। राजा ने चतुर वैद्यों द्वारा उनकी चिकित्सा करवाई जिससे थोड़े ही समय में स्वस्थ हो गये। स्वस्थ हो जाने के बाद भी धनोज्ञ अशन, पान खादिम स्वादिम आदि में मृच्छित हो जाने के कारण शैलक राजर्षि ने वहाँ से विहार नहीं किया। शैलक राजर्षि की यह दशा देख कर दूसरे सब साधुओं ने वहाँ रो विहार कर दिया सिर्फ एक पंथक साधु उनकी सेवा में रहा। एक दिन कार्तिक चातुमासिक प्रतिक्रमण करके पंथक निब्रन्थ ने शैलक राजर्षि को खमाने के लिए उनके चरणों का स्पर्श किया। उस समय शैलक राजर्षि अशन पान आदि का खव आहार करके मुख पूर्वक सोते हुए थे। पैरों का स्पर्श करने के कारण उनकी निद्रा भङ्ग हो गई जिससे वे कुपित हो गये। पंथक निर्ग्रन्थ ने विनय पूर्वफ अर्ज की कि- पूज्य ! आज चौमाती पर्व है। चौमासी प्रतिक्रमण करके