________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, शचवा भाग 436 अपनी भूल को समझ कर संयम मार्ग में दृढ़ हो जाय तो वह भी अपने अर्थ की सिद्धि कर सकता है इसके लिए शैलक राजर्षि का दृष्टान्त दिया गया है। द्वारिका नगरी में कृष्ण वादेव राज्य करते थे। उनके राज्य में थावच्च पुत्र नामक एक सार्थवाहपुत्र रहता था। एक समय भगवान् नेमिनाथ स्वामी वहॉ पधारे। उनका धर्मोपदेश सुन कर थावच्चापुत्र को वैराग्य उत्पन्न हो गया और एक हजार पुरुषों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की। भगवान् की आज्ञा लेकर थावच्चापुत्र अनगार एक हजार साधुओं के साथ अलग विहार करने लगे। एक वारविहार करते हुए सेलकपुर पधारे। वहाँ का राजा शैलफ अपने पन्थक आदि पाँच सौ मन्त्रियों सहित उनका धर्मोपदेश सुनने के लिए पाया। प्रतिवोध प्राप्त कर उसने श्रावकधर्मअंगीकार किया। उस समय शुक परिव्राजफ एफ एजार परिव्रामकों सहित अपने मत का उपदेश देता हुआ विचरताथा। विचरसा हुथा वह सौगन्धिका नगरी में आया। उसका उपदेश सुन कर सुदर्शन सेठ ने शौचधर्म अङ्गीकार किया। धिका नगरी में पधारे। उनका धर्मोपदेश सुनने के लिए नगर जनों के साथ सुदर्शन सेठ भी गया / उनका उपदेश सुन कर सुदर्शन सेठ ने शौचधर्म का त्याग कर दिया और विनय धर्म स्वीकार कर श्रावक व्रत अङ्गीकार कर लिये / इस बात को जान कर शक परिव्राजक वहाँ आया किन्तु सुदर्शन ने उसका आदर सत्कार नहीं किया। इसके पश्चात् वष्ठ सुदर्शन सेठ को साथ लेकर थावचापत्र अनगार के पास गया और बहुत से प्रश्न किये। उनका युक्तियुक्त उत्तर सन कर शुक परिव्राजक को सम्यग तत्त्व का बोध होगया और अपने हजार शिष्यों सहित थावच्चापुत्र अनगार के