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श्री सेठिया बैन पन्यमाला ~ - - - - www ~ ~~ ~ warm. ~~~~rrn
आहार आदि करने लग जायगा तो गृहस्थ उन वर्तनों को कच्चे जल आदि से धोकर साधु को भोजन करने के लिए देगा और साधु के भोजन कर लेने के बाद गृहस्थ उन बर्तनों को शुद्ध करने में फच्चेजल आदि का व्यवहार करेगा तथा वर्तनों को साफ करके उस पानी को अयतना पूर्वक इधर उधर फेंक देगा जिससे जीवों फी विराधना होगी, इत्यादि अनेक दोषों से संयम की विराधना होने की सम्भाषना रहती है इसलिए छकाया के रक्षक निग्रन्थ साधु को गृहस्थ के वर्तनों में आहार मादि न करना चाहिये।
(१५) आसन- निर्ग्रन्थ साधु को गृहस्थ के भासन, पलंग, खाट, कुर्सी आदि पर न बैठना चाहिये । इन पर चैठने से साधु को अनाचरित नाम का दोष लगता है। यदि कदावित् किसी कारण विशेष से कुर्सी भादि पर बैठना पड़े तो बैठने से पहले उनकी अच्छी तरह पडिलेहणा कर लेनी चाहिये क्योंकि उपरोक्त
आसनों में सूक्ष्म छिद्र होते हैं। अतः साधुओं द्वारा ये भासन सभी प्रकार से वर्जित हैं।
(१६) निषधा-निर्ग्रन्थ साधु को गृहस्थ के घर में जाकर बैठना न चाहिये । गृहस्थों के घर में बैठने से ब्रह्मचर्य का नाश होने की सम्भावना रहती है क्योंकि वहाँवैठने से स्त्रियों का परिचय होता है और स्त्रियों का विशेष परिचय ब्रह्मचर्य का घातक होता है। प्राणियों का वध तथा संयम का घात मादि दोष भी उत्पन्न होते हैं । भिक्षा के लिये भाये हुए दीन अनाथ गरीब प्राणियों के दान में अन्तराय पड़ता है। गृहस्थों के घर में बैठने से स्वयं घर के स्वामी को भी क्रोध उत्पन्न होता है। 'साधु का फाम है आहार लिया और चल दिया। घर में बैठने से क्या प्रयोजन प्रतीत होता है यह साधु चाल चलन का कच्चाई' इत्यादि प्रकार से गृहस्थ के मन में साधु के प्रति अनेक प्रकार की शङ्का उत्पन्न