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श्री मेठिया जैन ग्रन्पमाला ~ in mmmmmmmmmmwwwmanu v . . . मनुष्यों के भी हो सकता है। आहारक शरीर के स्वामी चौदह पूर्वधारी मुनिराज हैं।
(१०) संस्थान द्वार- औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरों में छहों संस्थान पाये जाते हैं। वैक्रियक में समचतुरस्र मौर हुण्डक दो संस्थान पाये जाते हैं। आहारक शरीर में एक समचतुरस्र संस्थान पाया जाता है।
(११) संहनन द्वार- औदारिफ, तैजम और कार्मण शरीर में छः संहनन पाये जाते हैं। आहारक में एक वज्रऋषभ नाराच संहनन पाया जाता है। वैक्रियफ शरीर में कोई संहनन नहीं होता।
(१२) सूक्ष्म वादर द्वार- कार्यण शरीर सव शरीरों से सूक्ष्म है। तेजस शरीर उससे वादर है। आहारक उससे बादर है । वैक्रियक शरीर उससे वादर है । औदारिक शरीर उससे बादर है। औदारिक शरीर सब शरीरों से वादर है। वैक्रिया, आहारक, तैमस और कार्मण शरीर क्रमशः सूक्ष्म हैं।
(१३) प्रयोजन द्वार- आठ कर्मों का तय कर मोक्ष प्राप्त करना औदारिक शरीर का प्रयोजन है। नाना प्रकार के रूप बनाना वैक्रियक शरीर का प्रयोजन है । प्राणिदया, संशयनिवारण, तीर्थकरों फीऋद्धि कादर्शन श्रादिप्रापरक शरीर का प्रयोजन है । संसार में परिभ्रमण करते रहना तैमस और फार्मण शरीर का प्रयोजन है।
(१४) विषय द्वार-मौदारिफ शरीर का विषय रुचक द्वीप तफ है। वैक्रियक शरीर का विषय असंख्यात द्वीप समुद्र पर्यन्त है। माहारक शरीर का विषय अढाई द्वीप पर्यन्त है। तेजस और फार्मण शरीर का विषय चौदह राजू परिमाण है।
(१५) स्थिति द्वार-औदारिक शरीर की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट तीन पन्योपम । वैक्रिय शरीर की जघन्य