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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह, पाचवां भाग ३८७ ~~rrn wn e rrr . . .... . . . . . . नियमा है। तैजस शरीर में कार्यण की और कार्मण में तैजस की नियया है अर्थात् ये दोनों शरीर एक साथ रहते हैं । इन दोनों शरीरों में शेप तीन शरीरों की भगना है।
( ५ )द्रव्य द्वार-औदारिक और वैक्रियफ शरीर के असंख्यात द्रव्य हैं। याहारक शरीर के संख्यात द्रव्य हैं। तैजस और कार्यण के अनन्त द्रव्य हैं। इन पांचों शरीरों के प्रदेश अनन्तानन्त हैं।
(६) द्रव्य की अपेक्षा अल्पबहत्व द्वार- आहारक शरीर के द्रव्य सब से थोड़ हैं। बैंक्रिया शरीर के द्रव्य उनसे असंख्यात गुणे अधिक हैं। श्रौदारिक शरीर के द्रव्य उनसे असंख्यात गुणे अधिक हैं । जस और कामण शरीर के द्रव्य उनसे असंत मनन गुणे अधिक हैं किन्तु परस्पर दोनों तुल्य हैं।
(७) प्रदेश की अपेक्षा अल्पबहुत्व द्वार- आहारक शरीर के प्रदेश सब से थोड़े हैं। वैक्रियफ शरीर के प्रदेश उनसे असंख्यात गुणे अधिक है। औदारिक शरीर के प्रदेश असंख्यात गुणे, तेजस के अनन्त गुणे और फार्मण शरीर के प्रदेश उनसे अनन्त गुण हैं।
(८) द्रव्य प्रदेश की अपेक्षाभल्पबहुत्व द्वार-भाहारक शरीर के द्रव्य सबसे थोड़े हैं। वैक्रिया शरीर के द्रव्य उनसे असंख्यात गुणे अधिक हैं । औदारिक शरीर के द्रव्य उनसे असंख्यात गुणे हैं। माहारक शरीर के प्रदेश अनन्त गुणे हैं । वैफियक शरीर के प्रदेश उनसे असंख्यात गुणे है । औदारिफ शरीर के प्रदेश उनसे असंख्यात गुणे हैं। तेजस और कार्मण शरीर के द्रव्य उनसे अनन्त गुणे हैं। तैजस शरीर के प्रदेश उनसे अनन्त गुणे हैं। कार्मण शरीर के प्रदेश उनसे अनन्त गुणे हैं। __(6) स्वामी द्वार-मनुष्य और तिर्यञ्चों के औदारिकशरीर होता है। तैजस और फार्मण शरीर चारों गति के जीवों के होते हैं। वैक्रियक शरीर नैरथिक और देवों के होता है सथा तिर्यश्च और