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श्री मेठिया नैन ग्रन्हमारना
(२) अर्थ द्वार-उधार अर्थात् प्रधान और स्थूल पुद्गलों से बना हुभाशरीर औदारिक फरलाता है। अथवा मांस,रुधिर और हड्डियों से बना हुभा शरीर औदारिफ कहलाता है।
जिस शरीर में एक, अनेस, छोटा, बड़ा यादि रूप बनाने की विविध क्रियाएं होती है वह वैक्रियफ शरीर कहलाता है।
प्राणिदया, तीर्थडूर भगवान् की ऋद्धि का दर्शन तथा संशय निवारण मादि प्रयोजनों से चौदह पूर्वधारी मुनिराज जो एक हाथ का पुतला निकालते हैं वह भाहारफ शरीर कहलाता है।
तैजस पुद्गलों से बना हुमा तथा आहार को पचाने की क्रिया करने वाला शरीर तैजस कहलाता है।
कर्मों से बना हुभा शरीर कार्यण कहलाता है।
(३) अवगाहना द्वार- औदारिफ शरीर की जघन्य अवगाना अंगुल के असंख्यातवें भागीर उत्कृष्ट एक हजार योजन से छछ अधिक होती है। क्रियक शरीर की जघन्य भरगाहना अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन से कुछ भधिक होती है। माहारक शरीर की जघन्य अवगाहना एक हाथ से कुछ फम, उत्कृष्ट एक हाथ की होती है। तैजस और कार्यण शरीर की जघन्य अवगाहना अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चौदह राजू परिमाण होती है। (४) संयोग द्वार- जहाँ मौदारिक शरीर होता है वहाँ तेजस और फार्मण शरीर की नियमा है अर्थात् निश्चित रूप से होते हैं। वैक्रियफ, आहारक शरीर की भजना है अर्थात् जहाँ औदारिक शरीर होता है वहाँ ये दोनों शरीर पाये भी जा सकते हैं और नहीं भी। क्रियक शरीर में तेजस फार्मण की नियमा, भौदारिक की भजना और आहारक का अभाव होता है। प्राहारक शरीर में वैक्रियक शरीर का प्रभाव होता है और शेष तीन शरीरों की