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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
(१५) प्रभावती
विशाला नगरी के स्वामी महाराजा चेटक के सात पुनियाँ थीं । सभी पुत्रियाँ गुणवती, शीलवती तथा धर्म में रुचि वाली थीं। उनमें से मृगावती, शिवा, प्रभावती और पद्मावती सोलह सतियों में गिनी गई हैं। इनका नाम मङ्गलमय समझ कर प्रातःकाल जपा जाता है । त्रिशला कुण्डलपुर के महाराज सिद्धार्थ की रानी थी। I उन्हीं के गर्भ से चरम तीर्थङ्कर श्रमण भगवान् महावीर का जन्म हुआ था । चेला श्रेणिक राजा की रानी थी। उसने अपने उपदेश तथा प्रभाव से श्रेणिक को सम्यग्दृष्टि तथा भगवान् महावीर का परम भक्त बनाया। सातवीं पुत्री का नाम सुज्येष्ठा था । चेलणा की बड़ी बहिन सुज्येष्ठा ने बालब्रह्मचारिणी साध्वी होकर आत्मकल्याण किया । देश तथा धर्म के नाम को उज्ज्वल करने वाली ऐसी पुत्रियों के कारण चेड़ा महाराज जैन साहित्य में अमर रहेंगे ।
प्रभावती का विवाह सिन्धुसौवीर देश के राजा उदयन के साथ हुआ था। उनकी राजधानी वीतभय नगर था। प्रभावती में जन्म से ही धर्म के दृढ़ संस्कार थे । उदयन भी धर्मपरायण राजा था। धर्म तथा न्याय से प्रजा का पालन करते हुए वे अपना जीवन सुखपूर्वक बिता रहे थे । कुछ समय पश्चात् प्रभावती के श्रभिचि नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ ।
एक बार श्रमण भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विचर कर जनता का कल्याण करते हुए वीतभय नगर में पधारे। राजा तथा रानी दोनों दर्शन करने गए । भगवान् का उपदेश सुन कर प्रभावती
दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की । दीक्षा की आज्ञा देने से पहले राजा ने रानी से कहा- जिस समय तुम्हें देवलोक प्राप्त हो मुझे प्रतिबोध देने के लिए आना । प्रभावती ने उसकी बात मान कर
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