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श्रीठिया जैन ग्रन्थमाला
दीक्षा अङ्गीकार कर ली । कठोर तपस्या तथा निर्दोष संयम का पालन करती हुई वह आयुष्य पूरी होने पर काल करके देवलोक मे उत्पन्न हुई।
अपने दिए हुए वचन के अनुसार उसने मृत्युलोक में आकर . उदयन राजा को प्रतिबोच दिया। राजा ने दीक्षा अङ्गीकार कर ली। फठोर तपस्या द्वारा वह राजर्षि हो गया। यथासमय कर्मों को खपा कर दोनों मोक्ष प्राप्त करेंगे।
(१६) पद्मावती पद्मावती वैशाली के महाराजा चेटक की पुत्री और चम्पानरेश महाराजा दधिवाहन की रानी थी। दधिवाइनन्यायी, प्रजावत्सल और धार्मिक राजा था। रानी भी उसी के समान गुणों गाली थी। राजा और रानी दोनों मर्यादित भोगों को भोगते हुए सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे।
एक बार राभि के पिछले पहर में रानी ने एक शुभस्वप्न देखा। पूछने पर स्वमशास्त्रियों ने बताया कि रानी के गर्भ से किसी प्रतापी पुत्र का जन्म होगा। राजा और रानी दोनों को बड़ी प्रसन्नता हुई।
रानीने गर्भधारण किया। कुछ दिनों बाद उसके मन में विविध प्रकार के दोहद (गर्मिणी की इच्छा) उत्पन्न होने लगे। एक बार रानी की इच्छा हुई-मैं राजा का वेश पहिन । सिर पर मुकुट रक्खू। राजा मुझ पर छत्र धारण करे। इस प्रकार सजधज कर मेरी सवारी नगर में से निकले । इसके बाद वन में जाकर क्रीडा करूँ।
लज्जा के कारण रानी अपने इस दोहद को प्रकट न कर सकी, किन्तु इच्छा बहुत प्रवल थी इसलिए वह मन ही मन घुलने लगी। उसके चेहरे पर उदासी छा गई। शरीर प्रतिदिन दुर्वल होने लगा।
राजा ने रानी से दुर्वलता का कारण पूछा । रानी ने पहले