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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग ३५३
wwwwwwwwwwww उनके शरीर का प्रतिविम्ब देखा । रूप और गुण में नल अद्वितीय था। दमयन्ती ने उसे सर्व प्रकार से अपने योग्य वर समझा। उसने राजकमार नल के गले में वरमाला साल दी। योग्य वर के चुनाव से सभी को प्रसन्नता हुई। सभी ने नव वरवधू पर पुष्पों की सषों की । राजा भीम ने यथाविधि दमयन्ती का विवाह राजकुमार नल के साथ फर दिया । यथोचित मादर सत्कार कर राजा भीम ने उन्हें विदा किया। ___ राजा निषध नव वरवधू के साथ आनन्दपूर्वक अपनी राजधानी भयोध्या में पहुंच गये। पुत्र के विवाह की खुशी में राजा निषध ने गरीबों को बहुत दान दिया। कुछ समय पश्चात् राजा को संसार से विरक्ति होगई। अपने ज्येष्ठ पुत्र नल फो राज्य का भार सौंप कर राजा ने दीक्षा अङ्गीकार कर ली। मुनि बन कर वे कठोर तपस्या करते हुए आत्मकल्याण करने लगे।
नल न्याय नीतिपूर्वक राज्य करने लगा। प्रजा को वह पुत्रवत् प्यार करता था। उसकी कीर्ति चारों ओर फैल गई । नल राजा का छोटा भाई कुबेर इस को सहन न कर सका। राजानल से उसका राज्य छीन लेने के लिये वह कोई उपाय सोचने लगा। कुबेर जुआ खेलने में पड़ा चतुर था। उसका फेंफा हुआ पासा उन्टा नहीं पड़ता था । उसने यही निश्चय किया कि नल फोजना खेलने के लिये कहा जाय और शते में उसफा राज्य दाव पर रख दिया जाय। फिर मेरा मनोरथ सिद्ध होने में कुछ देर न लगेगी। ___ एक दिन कुवेर नल के पास भाया। उसने जुआ खेलने का प्रस्ताव रक्खा । राजा नल को भी जमा खेलने का बहुत शौक था। उसने कुवेर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इसके लिये एक दिन नियत किया गया। दोनों भाई जमा खेलने बैठे। खेलते खेलते कुवेर ने कहा- भाई ! इस तरह खेलने में मानन्द नहीं