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श्री सेठिया जेन ग्रन्थमाला
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आता । कुछ शर्त रखिये । राजा नल ने अपना सारा राज्य दाव पर रख दिया । कुवेर का पासा सीधा पड़ा। वह जीत गया।शर्त के अनुसार अब राज्य का स्वामी कुवेर हो गया।
राजा नल राजपाट फो छोड़ कर जंगल में जाने को तैयार हुआ। दमयन्ती भी उसके साथ बन जाने को तैयार हुई । राजा नल ने उसे बहुत समझाया और कहा- प्रिये ! पैदल चलना, भूख प्यास को सहन करना, सर्दी गर्मी में समभाव रखना, जंगली जानवरों से भयभीत न होना, इस प्रकार के और भी अनेक कष्ट जंगल में सहन करने पड़ते हैं। तुम राजमहलों में पली हुई हो। इन कष्टा को सहन न कर सकोगी। इसलिये तुम्हारे लिये यही उचित है कि तुम अपने पिता के यहॉ चली जाओ। ___ दमयन्ती ने कहा- स्वामिन् ! भाप क्या कह रहे हैं ? क्या छाया शरीर से दूर रह सकती है ? मैं पापसे अलग नहीं रह सकती। जहाँ आप हैं वहीं मैं हूँ। मैं आपके साथ वन में चलँगी।
दमयन्ती का विशेप आग्रह देख फर नल ने उसे अपने साथ चलने के लिए कह दिया । नल और दमयन्ती ने वन की ओर प्रस्थान किया। चलते चलते वे एक भयंकर जंगल में पहुँच गये । सन्ध्या का समय हो चुका था और वे भी थक गए थे । इसलिए रात बिताने के लिए वे एक वृक्ष के नीचे ठहर गए। रास्ते की थकावट के कारण दमयन्ती को सोते ही नींद भागई । नल अपने भाग्य पर विचार कर रहा था। उसे नींद नहीं आई। वह सोचने लगा-दमयन्ती वन के कष्टों को सहन न कर सकेगी। मोह के कारण यह मेरा साथ नहीं छोड़ना चाहती है। इसलिए यही अच्छा है कि मैं इसे यहाँ सोती हुई छोड़ कर चला जाऊँ ऐसा विचार कर नल ने दमयन्ती की साड़ी के एक किनारे पर लिग्वा-प्रिये! बाएं हाथ की भोर तुम्हारे पीहर कुण्डिनपुर का रास्ता है। तुम वहाँ चली