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___भी सेठिया जैन मन्यमाला
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तुम्हारे राजसिंहासन बैठने पर मैं राजमाता बनी। मैंने संसार के सारे रंग देख लिये किन्तु मुझे आत्मिक शान्ति का अनुभव न हुा । ये सांसारिक सम्बन्ध मुझे बन्धन मालूम पड़ते हैं। मैं इन्हें तोड़ डालना चाहती हूँ।
माता कुन्ती के उत्कृष्ट वैराग्य को देख कर पाण्डवों ने उसे दीक्षा लेने की अनुमति दे दी। पुत्रों की अनुमति प्राप्त कर कुन्ती ने दीक्षा अङ्गीकार कर ली । विविध प्रकार की कठोर तपस्या करती हुई कुन्ती भार्या विचरने लगी। थोड़े ही समय में तपस्या द्वारा सभी कर्मों का क्षय कर वह मोक्ष में पधार गई।
(१३) दमयन्ती विदर्भ देश में कुंदिनपुर (कुन्दनपुर) नाम का नगर था। वहाँ भीम राजा राज्य करता था। उसकी पटरानी का नाम पुष्पवती था।उसकी कुक्षि से एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम दमयन्ती रक्खा गया। उसका रूप सौन्दर्य अनुपम था। उसकी पुद्धि तीव्र थी। थोड़े ही समय में वह स्त्री की चौंसठ कलाओं में प्रवीण होगई।
'दमयन्ती का विवाह उसकी प्रकृति, रूप, गुण आदि के अनुरूप वर के साथ हो ऐसा सोच कर राजा भीम ने स्वयंवर द्वारा उसका विवाह करने का निश्चय किया।विविध देशों के राजाओं के पास आमन्त्रण भेजे। निश्चित तिथि पर अनेक राजा और राजकुमार स्वयंवर मण्डप में एकत्रित हो गए। कौशलदेश (भयोध्या) का राजा निषध भी अपने पुत्र नल और कवर के साथ वहाँ माया। __ हाथ में माला लेकर एक सखी के साथ दमयन्ती स्वयंवर मण्डप में आई । राजामों का परिचय प्राप्त करती हुई दमयन्ती धीरे धीरे भागे बढ़ने लगी। राजकुमार नल के पास आकर उसने उनके वल पराक्रम आदि का परिचय प्राप्त किया। दर्पण में पड़ने वाले