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श्री जैन सिद्धान्त बोन समह, पांचवा भाग ३३५ mmmmmmmmmmmmmrawranamm ormin armmmmmmm rrrrrrrrrrr हमें वीरता पूर्वक शत्र का मुकाबला करना ही चाहिए। ऐसा सोच कर लक्ष्मण धनुष बाण लेकर आगे बढ़ा। उसके आते हुए वाणों को लव और कुश बीच में ही काट देते थे। शत्रु पर फेंके सबशस्त्रों को निष्फल जाते देख कर लक्ष्मण अति कुपित हुए। विजय का कोई उपाय न देख कर शत्र का सिर काट कर लाने के लिए उन्होंने चक्र चलाया । लव कुश के पास आकर उन दोनों भाइयों की प्रदक्षिणा देकर चक्र वापिस लौट आया।अब तो राम लक्ष्मण फी निराशा का ठिकाना न रहा । वे दोनों उदास होकर बैठ गये
और सोचने लगे कि मालूम होता है कि ये कोई नये बलदेव और वासुदेव प्रकट हुए हैं। __उसी समय नारद मुनि वहाँ भा पहुँचे। राम लक्ष्मण को उदास बैठे देख कर वे हंस कर कहने लगे- हर्षित होने के बदले आज आप उदास होकर कैसे बैठे हैं ? अपने शिष्य और पुत्र के सामने पराजित होना तो हर्ष की बात है। राम लक्ष्मण ने कहा-महाराज! हम आपकी बात का रहस्य कुछ भी नहीं समझ सके । जरा स्पष्ट करके कहिये । नारदजी ने कहा ये लड़ने वाले दोनों वीर माता सीता के पुत्र हैं। चक्र ने भी इस बात की सूचना दी है क्योंकि वह स्वगोत्री पर नहीं चलता।
नारदजी की बात सुन फर राम लक्ष्मण के हर्ष का पारावार न रहा। वे अपने वीर पुत्रों से भेट करने के लिए आतुरता पूर्वक उनकी तरफ चले । लव कुश के पास जाकर नारदजी ने यह सारा वृत्तान्त कहा । उन्होंने अपने अस्त्र शस्त्र-नीचे डाल दिये और आगे बढ़ कर सामने आते हुए राम लक्ष्मण के चरणों में सिर नमाया । उन्होंने भी प्रेमालिजन कर आशीर्वाद दिया। अपने वीर पुत्रों को देख कर उन्हें भति हर्ष हुआ। इसके बाद राम ने सीता को लाने की आज्ञा दी । सीता के पास जाकर लक्ष्मण ने चरणों