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श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला
शोभा नहीं देते। जरा मैदान में खड़े रह फर हमारा पराक्रम तो देखो जिससे हमारे कुल वंश का पता चल जाय । कुश के ये ममेकारी वचन मुन कर पृथुराज का अभिमान चूरचूर हो गया ।वह मन में सोचने लगा- इन दोनों वीगें का पराक्रम ही इनके उत्तम कुल वंश का परिचय दे रहा है । ये अवश्य ही किसी वीर क्षत्रिय की सन्तान हैं। इन्हें अपनी कन्या देने में मेरा गौरव ही है। ऐसा सोच कर पृथुराज ने राजा वनजंघ से सुलह करके अपनी कन्या का विवाह कुश के साथ कर दिया। इसी समय नारद मुनि वॉ श्रा पहुँचे । राजा वनजंघ के प्रार्थना करने पर नारद मुनि ने लव
और कुश के कुल वंश का परिचय दिया, जिससे पृथुराज को बड़ी प्रसन्नता हुई। वह अपने आप को सौभाग्यशाली मानने लगा। - इसके बाद राजा वज्रजंघ लव और कुश के साथ भनेक नगरों पर विजय फरता हुआ पुण्डरीकपर लौट आया।
सती साध्वी सीता पर फलंक चढ़ाना, गर्भवती अवस्था में निष्कारण उसे भयङ्कर वन में छोड़ देना आदि सारा वृत्तान्त नारदमी द्वारा जान कर लव और कुश राम पर अति कुपित हुए । राजा वनजंघ की सेनाको साथ में लेकर लव और कुश ने भयोध्या पर चढ़ाई कर दी। इस अचानक चढ़ाई से राय लक्ष्मण कोअति विस्मय हुआ। वे सोचने लगे कि यह कौन शत्र है और इस
आकस्मिक माझमण का क्या कारण है ? मारिखर अपनी सेना को लेकर वे भी मैदान में भाए। घमासान युद्ध शुरू हुभा । लव कुश के बाणप्रहार से परास्त होकर राम की सेना अपने प्राण लेकर भागने लगी। अपनी सेना की यह दशा देख कर वे विस्मय के साथ विचार में पड़ गए कि हमारी सेना ने भाज तक भनेक युद्ध किये। सर्वत्र विजय छुई किन्तु ऐसी दशा कभी नहीं हुई। क्या उपार्जन की हुई कीर्ति पर आज धव्या लग जायगा ? कुछ भी हो