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श्री पैन सिखान्त बोल समह, पाच माग ३२१
( ६ ) सीता
भरतक्षेत्र में मिथिला नाम की नगरी थी । वहाँ हरिवंशी राजा वासुकि का पुत्र राजा जनक राज्य करता था । उसका दूसरा नाम विदेह था । रानी का नाम विदेहा था । राजा न्याय-नीतिपरायण था । प्रजा का पुत्रवत् पालन करता था अतः प्रजा भी उसे बहुत मानती थी ।
रानी विदेहा में राजरानी के योग्य सब ही गुण विद्यमान थे । सुखपूर्वक समय बिताती हुई रानी एक समय गर्भवती हुई । समय पूरा होने पर रानी की कुक्षि से एक युगल, अर्थात् एक पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुआ। इससे राजा, रानी और प्रजा को बहुत ही प्रसन्नता हुई ।
इसी समय सौधर्म देवलोक का पिंगल नाम का देव अवधिज्ञान से अपना पूर्वभव देख रहा था। रानी विदेहा की कुक्षि से उत्पन्न होने वाले युगल सन्तान में से पुत्र रूप में उत्पन्न होने वाले जीव के साथ उसे अपने पूर्व भव के वैर का स्मरण हो प्राया । अपने वैर का बदला लेने के लिये वह शीघ्र ही रानी के प्रसूतिगृह में आया और वहाँ से वालक को उठा कर चल दिया । वह उसे मार डालना चाहता था किन्तु बालक की सुन्दर आकृति देख कर उसे उस पर दया आ गई। इससे उसे वैताढ्य पर्वत पर ले जाकर एक वन में सुनसान जगह पर रख दिया। इस प्रकार अपने वैर का बदला चुका हुआ मान कर वह वापिस अपने स्थान पर लौट आया ।
वैताढ्य पर्वत पर रथनूपुर नाम का नगर था । यहाँ पर चन्द्रगति नाम का विद्याधर राज्य करता था । वनक्रीड़ा करता हुआ वह उधर निकल आया । एक सुन्दर वालक को पृथ्वी पर पड़ा हुआ