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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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मुझे भोजन दो इससे तुम्हें धर्म होगा । मुलसा ने उत्तर दियाजिन्हें देने से धर्म होता है, उन्हें मैं जानती हूँ।
वहाँ से लौट कर सम्बड़ ने भाफाश में पद्मासन रचा और उस पर बैठ कर लोगों को आश्चर्य में टालने लगा।लोग उसे भोजन के लिए निमन्त्रित करने लगे किन्तु उसने किसी का निमन्त्रण स्वीकार नहीं किया। लोगों ने पूछा- भगवन् ! ऐसा फौन भाग्यशाली है जिसके घर का भोजन ग्रहण करके आप पारणा करेंगे।
भम्बड़ ने कहा- मैं सुलसा के घर का आहार पानी ग्रहण करूँगा।
लोग सुलसा को बधाई देने माए। उन्होंने कहा-सुलसे! तुम बड़ी भाग्यशालिनी हो। तुम्हारे घर भूखा संन्यासी भोजन करेगा।
सलसा ने उत्तर दिया- मैं इसे दोंग मानती हूँ।
लोगों ने यह बात अम्बड़ से कही । अम्बड़ ने समझ लियासलसा परम सम्यग्दृष्टि है जिससे महान् अतिशय देखने पर भी वह श्रद्धा में डॉवाडोल नहीं हुई।
इसके बाद अम्बड़ श्रावक ने जैन मुनि का रूप बनाया। 'णिसीहि णिसीहि' के साथ नमुक्कार मन्त्र का उच्चारण करते हुए उसने सुलसा के घर में प्रवेश किया। सुलसा ने मुनि जान कर उसका उचित सत्कार किया अम्बड़ श्रावक ने अपना असली रूप बता कर सलसा की बहुत प्रशंसा की। उसे भगवान् महावीर द्वारा की हई प्रशंसा की बात कही। इसके बाद वह अपने घर चला गया। * सम्यक्त्व में दृढ़ होने के कारण मुलसा ने तीर्थङ्कर गोत्र वॉधा।
आगामी चौवीसी में उसका जीव पन्द्रहवें तीर्थङ्कर के रूप में उत्पन्न होगा और उसी भव में मोत जायगा।
(टाणाग सूत्र, टाणा : सूत्र ६६१-६२ टीका) ।