________________
श्री जैन सिदान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
३०७
जंघा पर पड़े हुए तिल के निशान पर गया। राजा के मन में सन्देह हो गया। वे सोचने लगे- इस चित्रकार का मृगावती के साथ गुप्त सम्बन्ध होगा, नहीं तो वह इस तिल को कैसे जान सकता है। उसका अपराध बहुत बड़ा है, इसके लिए उसे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिए। यह निश्चय करके राजा ने उसके लिए मृत्युदण्ट की धाज्ञा दे दी।
चित्रकार ने क्षमा याचना करते हुए कहा-महाराज ! मुझे पक्ष की तरफ से वरदान मिला हुआ है। यह बात सभी लोग जानते हैं। आप भी इससे अपरिचित नहोंगे। उस वर के कारण में किसी वस्तु या व्यक्ति का एक अङ्ग देख कर पूरा चित्र बना सकता हूँ। मैंने महारानी का केवल एक अंगूठा देखा था, उसी से वर के कारण सारा चित्र खींच दिया।जपा के दाग को निकालने के लिए मैंने कई बार प्रयत्न किया किन्तु वह न निकला। हार कर मैंने दूसरे दिन इस चित्र को कपड़े पहिनाने का निश्चय किया जिस से यह दाग ढक जाय। मैंने भाप से सच्ची पात निवेदन कर दी है, अब भाप जो चाहें कर सकते हैं। आप हमारे मालिक हैं।
राजा ने चित्रकार की परीक्षा के लिए उसे एक कुब्जा का केवल मुंह दिखा कर सारीका चित्र बनाने की आज्ञादी चित्रकार ने कुना का हूबहू चित्र बना दिया। राजा को उसकी वास पर विश्वास हो गया। फिर भी उसने इस बात को अपना अपमान समझा कि चित्रकार ने रानी का चित्र उससे बिना पूछे इस प्रफार बनाया। इस लिए राजाने यह कहते हुए कि भविष्य में यह किसी कुलवती महिला का चित्र न खींचने पावे, चित्रकार का अंगूठा काट लेने की आज्ञा दे दी।
बिना दोष के दण्डित होने के कारण चित्रकार को यह वात बहुत बुरी लगी। उसने मन में बदला लेने का निश्चय किया।