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श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला
धीरे धीरे बाएं हाथ से चित्र बनाने का मभ्यास कर लिया। इस के बाद उसने मृगावती का चित्र बनाया और उसे शतानीक के परम शत्र भवन्ती के राजा चण्डप्रद्योतन के पास लेगया। __ राजा चण्डप्रयोतन उस सुन्दर चित्र को देख कर आश्चर्य में पड़ गया और चित्रकार से पूछने लगा- यह चित्र काल्पनिक है या वास्तव में इतनी सुन्दर स्त्री संसार में विद्यमान है ? ऐसा भाग्यशाली पुरुष कौन है जिसे ऐसी सुन्दरी पत्नी रूप में प्राप्त हुई है।
चित्रकार ने उत्तर दिया-महाराज ! यह चित्र काल्पनिक नहीं है। यह चित्र भापके शत्रु कौशाम्बी के राजा शवानीक की पटरानी मृगावती का है। महाराज ! चित्र तो चित्रही है। मृगावती का बास्तविक सौन्दर्य इससे हजारों गुणा अधिक है।
चित्रकार की बात सुनते ही राजा के हृदय में काम विकार जागृत हो गया। साथ में पुगना वैर भी ताना हो गया। उसने मन में सोचा- ऐसी सन्दरी तो मेरे महलों में शोभा देती है । शतानीक के पास उसका रहना उचित नहीं है। यह सोच कर अपने वज्रजंघ नामक दूत को बुलाया और मृगावती की मांगनी करने के लिए शतानीक के पास भेज दिया।
दत कौशाम्बी पहुंचा। शतानीक के सामने जाकर उसने चण्डप्रद्योतन का सन्देश सुनाया- महाराज ! हमारे महाराजा ने थापकी रानी मृगावती की मांगनी की है और कहलाया हैजैसे मणि शीशे के साथ शोभा नहीं देती उसी प्रकार सगावती भापके साथ नहीं शोभती। इस लिए उसे शीघ्र मेरे अधीन कर दीजिए। मुकुट सिर पर ही शोभता है, पैर पर नहीं । यदि आप को अपने जीवन और राज्य की चिन्ता हो तो विना हिचकिचाहट मृगावती को सौंप दीजिए।
दत का वचन मन कर शतानीक को बहुत क्रोध आया। उस