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श्री सेठिया जैन मन्यमाला
आनन्द पूर्वक रहने लगे । चित्रकार अपनी कुशलता के कारण सब जगह प्रसिद्ध हो गया। उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गई ।
एक बार शतानीक ने अपनी चित्रशाला चित्रित करने के लिए
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उसी चित्रकार को बुलाया। राजा ने उसकी बहुत प्रशंसा की और
अपनी चित्रशाला में विविध प्रकार के प्राणी, सुन्दर दृश्य तथा दूसरी वस्तुएं चित्रित करने के लिए कहा ।
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चित्रकार अपनी कारीगरी दिखाने लगा। सिंह, हाथी मादि प्राणी ऐसे मालूम पढ़ते थे जैसे वे अभी बोलेंगे। प्राकृतिक दृश्य ऐसे मालूम पढ़ते थे जैसे वास्तविक हो । सभी चित्र सजीव तथा भावपूर्ण थे। एक बार रानी मृगावती अपने महल की खिड़की मैं बैठी हुई थी । उसका अंगूठा चित्रकार की नजरों में पड़ गया । यक्ष द्वारा प्राप्त हुए वरदान के कारण उसने सारी मृगावती का हूबहू चित्र बना दिया। चित्रबनाते समय उसकी पीछी से काले रंग का एक धव्वा चित्र की जांघ पर गिर पड़ा । चित्रकार ने उसे पांच दिया किन्तु फिर भी वह काला चिह्न बना रहा । चित्रकार ने सोचामृगावती की जांघ पर सचमुच फाला तिल होगा इसी लिए वरदान के कारण वारवार पोंछने पर भी यह दाग यहाँ से नहीं मिटता । यह चिह्न देखने वाले के दिल में सन्देह पैदा करने वाला है, किन्तु नहीं निकलने पर क्या किया जाय। इस चित्र को वस्त्र पहना देने चाहिएं जिससे यह तिल ढक जाय । यह सोच कर काम को दूसरे दिन के लिए मुल्तवी करके वह अपने घर चला गया ।
अचानक उसी समय महाराज शतानीक चित्रशाला देखने के लिए आए । अनेक प्रकार के सुन्दर और कला पूर्ण चित्रों को 'देख कर उन्हें बढ़ी प्रसन्नता हुई। चित्र देखते हुए वे मृगावती के वस्त्र रहित चित्र के पास भा पहुँचे । चित्र को देख कर उन्हें चित्रकार की कुशलता पर आश्चर्य होने लगा । अचानक उनका ध्यान