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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
मेले के दिन किसी न किसी चित्रकार को उस यतका चित्र अवश्य बनाना पड़ता है। यदि चित्र में किसी प्रकार की त्रुटि रह जाय तो यक्ष चित्रकार के प्राण ले लेता है । यदि उस का चित्र बनाने के लिए कोई तैयार न हो तो यक्ष कुपित होकर नगर में उपद्रव मचाने लगता है। बहुत से लोगों को मार डालता है।
इस बात से डर कर बहुत से चितेरे नगर छोड़ कर भाग गए, फिर भी यक्ष का कोप कम नहीं हुआ। सांकेतनपुर में सभी लोग भयभीत रहने लगे। यह देख कर यक्ष को प्रसम करने के लिए राजा ने सिपाहियों को भेज कर चितेरों को फिर नगर में बुला लिया। मेले के दिन प्रत्येक चित्रकार के नाम की चिट्ठी घड़े में डाल कर एक कन्या द्वारा निकलवाई जाती है। जिसके नाम की चिट्टी निकलती है उसी को यक्ष का चित्र बनाने के लिए जाना पड़ता है। आज मेले का दिन है। मेरे पुत्र के नाम की चिट्ठी निकली है। मेरा यह इकलौता बेटा है। इसी की कमाई से घर का निभाव हो रहा है। यह चिही यमराज के घर का निमन्त्रण है। इस वृद्धावस्था में इस पुत्र के विना मेरा कौन सहारा है?
कौशाम्बी के चित्रकार ने कहा- माताजी! आप शोक मत कीजिए। यत का चित्र बनाने के लिए आपके पुत्र के बदले में चला जाऊँगा। इस प्रकार उसने वृद्धा के शोक को दूर कर दिया। धैर्य, उत्साह और साहसपूर्वक वह पुलिस के साथ हो लिया। उस ने उसी समय अहम तप का पच्चखाण कर लिया और चित्र बनाने के लिए केसर, कस्तूरी भादि महा मुगन्धित पदार्थों को साथ ले लिया। पवित्र होकर वह यक्ष के मन्दिर में पहुँचा।केसर, चन्दन, भगर, कस्तूरी भादि मुगन्धित पदार्थों के विविध रंग बना कर उस ने यक्ष का चित्र बनाया।फिर चित्र की पूजा करके एकाग्र चित्त से उसके सामने बैठ कर और हाथ जोड़ कर कहने लगा