________________
AAA
श्री जैन सिमान्त बोन समह,
पांचवां भाग २८६
खड़ा रह गया । दुर्योधन के पूछने पर उसने कहाभाई ! मुझ से यह नहीं खींचा जा रहा है। अधिक जोर से खींचता हूँ तो ऐसा मालूम पड़ता है जैसे कोई मेरा हाथ पकड़ कर खींच रहा है। इसके मुंह पर देखता हूँ तो आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है । पता नहीं इसमें इतना बल कहाँ से आगया । मेरे हाथ काम नहीं कर रहे हैं। अब तो तुम आओ ।
सारी सभा स्तब्ध रह गई । दुर्योधन ने अपनी जांघ उघाड़ी और कहा द्रौपदी ! आओ यहाँ बैठो ।
सभी का मस्तक लज्जा से नीचे झुक गया । भीष्म और द्रोण कुछ न बोल सके । भीम से यह दृश्य न देखा गया। उसने खड़े हो कर प्रतिज्ञा की - दुःशासन ! दुर्योधन ! यह दृश्य मेरी आँखें नहीं देख सकतीं। अभी तो हम लाचार हैं, प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण कुछ नहीं कर सकते किन्तु युद्ध में अगर मैं दु:शासन के रक्त से द्रौपदी के इन केशों को न सींचें तथा दुर्योधन की इस जांघ को चूर चूर न करूँ तो मेरा नाम भीम नहीं है ।
1
सारी सभा में भय छा गया। भीम के बल से सभी कौरव परिचित थे । उसकी प्रतिज्ञा भयङ्कर थी । इतने में धृतराष्ट्र और गान्धारी वहाँ आए । धृतराष्ट्र युधिष्ठिर आदि पाण्डवों के पिता पाण्डु के बड़े भाई थे । वे जन्मान्ध थे, इस लिए गद्दी पाण्डु को मिली। धृतराष्ट्रको अपनी सन्तान पर प्रेम था। वे चाहते थे कि गद्दी उनके ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को मिले, किन्तु लोकलाज से डरते थे । सभा में आते ही उन्होंने द्रौपदी को अपने पास बुला कर सान्त्वना दी । दुःशासन और दुर्योधन को उलाहना दिया । अपने पुत्र द्वारा दिए गए इस कष्ट के लिए द्रौपदी से कुछ मांगने को कहा ।
द्रौपदी बोली- मुझे और कुछ नहीं चाहिए मैं तो सिर्फ पाँचों पाण्डवों की मुक्ति चाहती हूँ ।