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श्री मठिया जैन ग्रन्थमाला
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अपनी गदा भूमि पर फटकारी । युधिष्ठिर ने उसे मना कर दिया क्योंकि वे दास थे।
यह देख कर दुर्योधन बोला-देख क्या रहे हो? खींच रालो।
द्रौपदी प्रभु का स्मरण कर रही थी। मानवसमाज में उस समय उसे कोई ऐसा व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था जो एक भवला की लाज बचा सके। भीष्म द्रोणाचार्य, विदुर आदि बड़े बड़े धर्मात्मा
और नीतिज्ञ उस समय गुलामी के बन्धन में जकड़े हुए थे । वे दुर्योधन के वेतनभोगी दास थे, इस लिए उसका विरोध न कर सकते थे। मानवसमाज जो नियम अपने कल्याण के लिए बनाता है, वे ही समय पड़ने पर अन्याय के पोषक बन जाते हैं।
ऐसे समय में द्रौपदी को भगवान् के नाम के सिवाय और कोई रतक दिखाई नहीं दे रहा था। वह अपनी लज्जा बचाने के लिए प्रभु से प्रार्थना कर रही थी। दुःशासन उसके चीर को बलपूर्वक खींच रहा था।
आत्मा में अनन्त शक्ति है, उसके सामने बाह्य शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है । जव तक मनुष्य वाह्य शक्ति परभरोसा रखता है,बाह्य शस्त्रास्त्र तथा सेनाबल को रक्षायाविध्वंस का उपाय मानता है, तब तक आत्मशक्ति का प्रादुर्भाव नहीं होता। द्रौपदी ने भी वाह्य शक्ति पर विश्वास करके जब तक रक्षा के लिए दूसरों की मोर देखा उसे कोई सहायतान मिली। भीम की गदा और भर्जन के वाण भी काम न भाए। अन्त में द्रौपदीने वाह्य शक्ति से निराश होकर आत्मशक्ति की शरण ली। वह सब कुछ छोड़ कर प्रभुके ध्यान में लग गई।
दुःशासन ने अपनी सारी शक्ति लगा दी किन्तु वह द्रौपदी का चीर न खींच सका । उसे ऐसा मालूम पड़ने लगा जैसे द्रौपदी में कोई महान् शक्ति कार्य कर रही हो। वह भयभीत सा होकर