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भी जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पांचवां भाग २८७
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm वधू को पापी दुःशासन इस प्रकार अपमानित करे और आप बैठे बैठे देखते रहें, क्या यही न्याय है ? क्या आप एक अबला के सन्मान की रक्षा नहीं कर सकते ? _ 'देखी ऐसी कुलवधू पाँच पति फिर भी कुलवधू । तुम्हारे पति जुए में हार गए हैं। वे हमारे दास बन चुके हैं। साथ में तुम भी' दुःशासन ने डाटते हुए कहा। _ 'वस वस, मैं कभी गुलाम नहीं हो सकती। मैं सभासे पूछती हूँ कि मेरे पतियों ने मुझे स्वयं दास होने से पहले दाव पर रक्वा था या बाद में ? अगर पहले रखा हो तभी मैं गुलाम बन सकती हूँ, बाद में रखने पर नहीं।' द्रौपदी ने कहा। ___ सभी लोग शान्त बैठे रहे। उत्तर कौन दे? वह सभा न्याय करने के लिये नहीं जड़ी थी फिन्तु पाप्डनों का विनाश करने के लिए। वहाँ न्याय को सुनने वाला कोई न था। यद्यपि भीष्म द्रोणाचार्य वगैरह स्वयं पापीन थे किन्तु पापी मालिक की नौकरी के कारण उनका हृदय भी कमजोर बन गया था। इसी लिए वे दुःशासन का विरोध न कर सके। ___ सभी को शान्त देख कर दुःशासन, द्रौपदी और पाण्डवों को लक्ष्य कर कहने लगा- हम कुछ भी नहीं सुनना चाहते। तुम सभी राजसी पोशाक उतार दो । तुम छहों हमारे गुलाम हो।
पाँचों पाण्डवों ने राजसी पोशाक उतारदी किन्तु द्रौपदी चुपचाप वैसी ही खड़ी रही।
'क्यों तुम नहीं सुन रही हो ?' दुःशासन ने चिल्ला कर कहा। 'मैंने एक ही कपड़ा पहिन रखा है, मैं रजस्वला हूँ।' द्रौपदी ने उत्तर दिया।
'अब रजस्वला बन गई' कह कर दुःशासन ने उसका पल्ला पकड़ लिया। भीम अपने क्रोध कोन रोक सका। उसने खड़े होकर