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भी न सिरान्त बोल सग्रह, पापका भाग
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की हिंसा होती है तो यदि मैं सारा शाक यहाँ परठ देंगा तो बहुत से प्राण (दीन्द्रियादि),भूत (वनस्पति)जीव, पञ्चेन्द्रिय)तथा सत्त्व (पृथ्वी कायादिक) मारे जावेंगे। इस लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं स्वयं इस शाक का आहार करलँ। यह शाक मेरे शरीर में ही गल जायगा। यह सोच कर उन्होंने मुखव स्त्रिका की पडिलेहणा की।अपने शरीर को पंजा। इसके बाद उस कड़वेशाक को इस तरह अपने पेट में डाल लिया जिस तरह साँप बिल में प्रवेश करता है। __ आहार करने के बाद एक मुहूर्त के अन्दर अन्दर वह शाक विषरूप में परिणत हो गया। सारेशरीर में असह्य वेदना होने लगी। उनमें बैठने,उठने की शक्ति नष्ट हो गई। वेवलरहित पराक्रमरहित
और वीर्यरहित हो गए। - अपने आयुष्य को समाप्तप्राय जान कर धर्मरुचि अनगार ने पात्र अलग रख दिए। स्थण्डिल की पडिलेहणा करके दर्भ का संथारा विछाया। उस पर बैठ कर पूर्व की ओर मुँह किया। दोनों हाथों की अञ्जलि को ललाट पर रख कर उन्होंने इस प्रकार बोलना शुरू किया
णमोत्थुणं अरिहंताणं जाव संपत्ताण,णमोत्थुण धम्म• घोसाणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसगाणं, पुव्विं पि
णं मम धम्मघोसाणं थेराणं अन्तिए सव्वे पाणातिवाए पच्चक्खाए जाधज्जीवाए जाव परिग्गहे। इयाणिं पि एणं अहं तेसिं चेव भगवंताणं अतियं सव्वं पाणातिवायं पच्चक्खामिजाव परिग्गहं पच्चक्खामिजावज्जीवाए। ___ अर्थात्- अरिहन्त भगवान् पौर सिद्ध भगगन् को मेरा नमस्कार हो तथा मेरे धर्माचार्य एवं धर्मोपदेशक धर्मघोष स्थविर को नमस्कार हो । मैंने प्राचार्य भगवान के पास पहले सर्व प्राणातिपात से लेकर परिग्रह तक सब पापों का यावज्जीवन त्याग किया था। अब फिर भी