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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
सहित विहार करते हुए चम्पानगरी के सुभूमिभाग नामक उद्यान में पधारे। उन्हें वन्दना करने के लिए नगरी के बहुत से लोग गए। मुनि ने धर्मोपदेश दिया। व्याख्यान के बाद सभी लोग अपने अपने स्थान पर चले आए।
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धर्मघोष स्थविर के शिष्य धर्मरुचि अनगार मास मास खमण की तपस्या करते हुए विचर रहे थे। मासखमण के पारने के दिन धर्मरुचि अनगार ने पहिलो पोरिसी में स्वाध्याय किया। दूसरी में ध्यान किया। फिर तीसरी पोरिसी में पात्र वगैरह की पडिलेहणा aah धर्मघोष स्थविर की आज्ञा ली । चम्पा नगरी में आहार के लिए उच्च नीच कुलों में घूमते हुए वे नागश्री के घर पहुँचे । नागश्री उन्हें देख कर खड़ी हुई और रसोई में जाकर वही कड़वे तुम्बे का शाक उठा लाई । उसे धर्मरुचि अनगार के पात्र में डाल दिया ।
पर्याप्त आहार आया जान कर धर्मरुचि अनगार नागश्री ब्राह्मणी के घर से निकल कर उपाश्रय में आए। आहार का पात्र हाथ में लेकर गुरु को बताया । धर्मघोष स्थविर को तुम्बे की गन्ध बुरी लगी । शाक की एक बूँद हाथ में ले कर उन्होंने उसे चखा तो बहुत कड़वा तथा अभक्ष्य मालूम पड़ा । उन्होंने धर्मरुचि अनगार से कहा- हे देवानुप्रिय ! कड़वे तुम्बे के इस शाक का यदि तुम आहार करोगे तो अकालमृत्यु प्राप्त करोगे। इस लिए इस शाक को किसी एकान्त तथा जीव जन्तुओं से रहित स्थण्डिल में परठ आओ । दूसरा एपणीय आहार लाकर पारना करो।
धर्मरुचि अनगार गुरु की आज्ञा से सुभूमिभाग नामक उद्यान से कुछ दूर गए। स्थण्डिल की पडिलेइरणा करके उन्होंने शाक की एक बूँद जमीन पर डाली। उस की गन्ध से उसी समय वहाँ हजारों कीड़ियाँ आ गई और स्वाद लेते ही अकाल मृत्यु प्राप्त करने लगीं। यह देख धर्मafa rare ने सोचा- एक वॅट से ही जीवों