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भी जैन सिद्धान्त बोल मंग्रह, पांचवां भाग १
wommixmmmon को प्रकट करने के लिए वे विविध प्रकार से कुचेष्टाएं करने लगे।
राजीमती को पता चल गया कि गुफा में कोई पुरुप है और वह बुरी चेष्टाएं कर रहा है। वह डर गई कि कहीं यह पुरुप बल प्रयोग न करे। ऐसे समय में शील की रक्षा का प्रश्न उसके सामने बहुत विकट था। थोड़ी सी देर में उसने अपने कर्तव्य का निश्चय कर लिया। उसने सोचा- मैं वीरवाला हूँ। हंसते हुए प्राणों पर खेल सकती हूँ। फिर मुझे क्या दर है ? मनुष्य तो क्या देव भी मेरे शील का भंग नहीं कर सकते। वस्त्र पहिनने में विलम्ब करना रचित न समझ कर वह मर्कटासन लगाकर बैठ गई। जिससे फामातुर व्यक्ति उस पर शीघ्र हमला न कर सके।
अंधेरे के कारण रथनेमि राजीमती को दिखाई न दे रहे थे। राजीमती कुछ प्रकाश में थी इस कारण रथनेमि को स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उन्होंने राजीमती को पहिचान लिया और चेहरे की भावभङ्गी से जान लिया कि राजीमती भयभीत हो गई है। वे अपने स्थान से उठ कर राजीमती के पास माए और कहने लगे-- राजीमती! डरोमत । मैं तुम्हारा प्रेमी रथनेमि हूँ। मेरे द्वारा तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट न होगा। भय और लज्जा को छोड़ दो।आओ हम तुम मनुप्योचित मुख भोगें। यह स्थान एकान्त है,कोई देखने वाला नहीं है। दुर्लभ नरजन्म को पाकर भी मुखों से वञ्चित रहनासूखेता है।
रथनेमि के शब्द सुनकर राजीमती का भय कुछ कम हो गया। उसने सोचा- स्यनेमि कुलीन पुरुष हैं इस लिए समझाने पर मान जाएंगे। उसने मर्कटासन त्याग फर कपड़े पहनना शुरू किया। रथनेमि कामुक बन कर राजीमती से विविध प्रकार की मार्थनाएं कर रहे थे और राजीमती रूपरे पधिन रही थी। कपड़े पहिन लेने पर उसने कहा- स्थनेमि भनगार ! मापने मनिव्रत अङ्गीकार किया है। फिर आप कामुक तथा पतित लोगों के समान