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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
कैसी बातें कर रहे हैं ?
स्थनेमि- साधु होने पर भी इस समय मुझे तुम्हारे सिवाय कुछ नहीं सूझ रहा है। तुम्हारे रूप पर आसक्त होकर मैं सारा ज्ञान, ध्यान भूल गया हूँ।
राजीमती-आपको अपनी प्रतिज्ञाओं पर दृढ़ रहना चाहिए। क्या आप भूल गए कि आपने संयम अङ्गीकार करते समय । प्रतिज्ञाएं की थी ? रथनेमि-मुझे वे प्रतिज्ञाएं याद हैं,किन्तु यहाँ कौन देख रहा है ?
राजीमती-जिसे दूसरा कोई न देखे क्या वह पाप नहीं होता? अपनी अन्तरात्मा से पूछिए। क्या छिप कर पाप करने वाला पतित नहीं माना जाता ? ___ मायावी होने के कारण वह तो खुल्लमखुल्ला पाप करने वाले से भी अधिक पातकी है।
रथनेमि- अगर छिप कर ऐसा करना तुम्हें पसन्द नहीं है तो आओ हम दोनों विवाह करलें और संसार का आनन्द उठाएं । - वृद्धावस्था आने पर फिर दीक्षा ले लेंगे।
राजीमती- आपने उस समय स्वयं लाए हुए पेय पदार्थ को क्यों नहीं पिया था ? स्थनेमि- वह तुम्हारा वमन किया हुआ था । राजीमती- यदि आप ही का वमन होता तो आप पीजाते ? रथनेमि-यह कैसे हो सकता है,क्या वमन को भी कोई पीता है?
राजीमती-तो आप कामभोगों को छोड़ कर (उनका वमन करके) फिर स्वीकार करने के लिये कैसे तैयार हो रहे हैं ? __ स्थनेमि कुमार ! आप अन्धकवृष्णि के पौत्र, महाराजा समुद्र विजय के पुत्र, धर्मचक्रवर्ती तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमि के भाई हैं। त्यागे हुए को फिर स्वीकार करने की इच्छा आपके लिये लज्जा