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बोल नं०
पृष्ठ बोल नं० निम्रन्थीय अ० की ४१६ १०९ उ० ४ को ३८० ८९८ गाथाएं अठारह दशवे- ८७७ गाथाएं सतरह विनय कालिक प्रथम चूलिका
समाधि अध्य० की ३७७ की सयम में स्थिर करने । ८६२ गाथाएं सोलह उत्तरा०
के लिए ४२० पन्द्रहवें अध्य० की १५२ ८७४ गाथाएं आचा० त०१ ८६१ गाथाएं सोलह दशवकाअध्ययन ९ उद्देशे
लिक द्वितीय चूलिका की १४७ दूसरे की १८२ / ८४७ गुणश्रेणी ७९ ८६३ गाथाएं उत्तराध्ययन ८६४ गुण सोलह दीक्षार्थी के १५८
ग्यारहवें अध्य० की १५५ ८४७ गुणसंक्रमण ७९ ८५४ गाथाएं पन्द्रह अना- ८४७ गुणस्थान का सामान्य थता की उत्तराध्ययन
स्वरूप बीसवें अध्ययन की १३० ८४७ गुणस्थान चौदह ६३ ८५४ गाथाएं पन्द्रह उत्तरा० ८४७ गुणस्थान के २८ द्वार १०५
बीसवें अध्ययन की १३० ८४७ गुणस्थानों के नाम ८५३ गाथाएं पन्द्रह दशवैका
और स्वरूप ७२ लिक नवें अध्य० की १२७ ८४७ गुणस्थानो मे अन्तरद्वार ११२ ८५३ गाथाएं पन्द्रह पूज्यताको ८४७ गुणस्थानो में अल्प
बताने वाली दशवकालिक पहुत्व द्वार ११३
नवें अध्य० की १२७ / ८४७ गणस्थानों में आत्म द्वार १०८ ८७७ गाथाएं सतरह दशव
८४७ गुणस्थानों में उदय ९४ कालिक नवे अ० की ३७७ । ८४७ गुणस्थानो मे उदीरणा ९८ ८७८ गाथाएं सतरह भगवान्
८४७ गुणस्थानो में उपयोग १०९ महावीर की तपश्चर्या ८४७ गुणस्थानो में कारण विषयक आचारांग श्रुत० द्वार
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