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भी चैन सिमान्त वोल संग्रह, पांचवां भाग
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पुरुष के लिए स्थान नहीं है। दूसरे के विचारों पर अपने हृदय को रावाँटोल करना कायरता है।
माता- नेमिकमार (अरिष्टनेमि) तो दीक्षा लेंगे। क्या उन के पीछे तुम भी ऐसी ही रह जामोगी ? ___ राजीमती- माता जी ! जब वे दीक्षा लेंगे तो मैं भी उन के मार्ग पर चलगी। पति कठोर संयम का पालन करे तो पत्नी को भोगविलासों में पड़े रहना शोभा नहीं देता। जिस प्रकार वे काम क्रोध मादि यात्मा के शत्रओं को जीतेंगे उसी प्रकार में भी उन पर विजय प्राप्त करूँगी।
राजीमती के उत्तर के सामने माता पिता कुछ न कह सके। वे राजीमती की सखियों कोउसे समझाने के लिए कह कर चले गए।
सखियों ने राजीमतीको समझाने का बहुत प्रयत्न फिया किन्तु वह अपने निश्चय पर अटल थी। उसका हृदय, उसकी बुद्धि, उसकी वाणी तथा उसके प्रत्येक गेम में नेमिकमार समा चुके थे। वह उन के प्रेम में एसी रंग गई थी, जिस पर दूसरा रंग चढ़ना असम्भव था। वह दिन रात उनके स्मरण में रहती हुई वैरागिन की तरह समय विताने लगी।
सती स्त्रियाँ अपने जीवन को पति के जीवन में,अपने अस्तित्व को पति के अस्तित्व में तथा अपने सुख को पति के सुख में मिला देती हैं। उनका प्रेम सच्चा प्रेम होता है। उस में वासना की मुख्यता नहीं रहती। राजीमती के प्रेम में तो वासना की गन्ध भी न थी। उसे नेमिकुमार द्वारा किसी सांसारिक मुख की प्राप्ति नहीं हुई थी,न भविष्य में प्राप्त होने कीआशा थी फिर भी वह उनके प्रेम कीमतवाली थी। वह अपनी आत्माको भगवान् अरिष्टनेमि की आत्मा से मिला देना चाहती थी। शारीरिक सम्बन्ध की उसे परवाह न थी।
शुद्ध प्रेम मनुष्य को ऊँचा उठाता है। एक व्यक्ति से शुरू हो