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भी जैन सिदान्त गोल संग्रह, पांचवां भाग
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लिया, उसे ही अपना पति माना।
भगवान् अरिष्टनेमि तोरण द्वार से लौट कर अपने महल में चले आए। उसी समय तीर्थङ्करों की मर्यादा के अनुसार लोकान्तिक देव उन्हें चेताने के लिए आए और सेवा में उपस्थित होकर कहने लगे-प्रभो! संसार में पाप बहुत बढ़ गया है। लोग विषय वासनाओं में लिप्त रहने लगे हैं । वलवान् माणी दुर्बलों को सती रहे हैं। जनता को हिंसा, स्वार्थ, विषयवासना आदि पाप प्रिय मालूम पड़ने लगे हैं। इस लिए प्रभो! धर्मतीर्थ की प्रवर्तना कीजिये जिससे प्राणियों को सच्चे मुख का मार्ग प्राप्त हो भौर पृथ्वी पर पाप का भार हल्का हो । भव्य प्राणी अपन कल्याण के लिए श्राप की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
लोकान्तिक देवों की प्रार्थना सुन कर भगवान् ने वार्षिक दान देना प्रारम्भ कर दिया। __ स्थनेमि को भी संसार से विरक्ति हो गई थी। भगवान् के साथ दीक्षा लेने की इच्छा से वे भगवान के दीक्षा दिवस की प्रतीक्षा करने लगे । दुसरे यादव भी जो भगवान् के उपदेश से प्रभावित हो कर संसार छोड़ने को तैयार हो गए थेव भी उस दिन की प्रतीक्षा करने लगे।
महाराजा उग्रसेन को जब यह मालूम पड़ा कि अरिष्टनेमि वार्षिक दान दे रहे हैं और उसके अन्त में दीक्षालेलेंगे तो उन्होंने राजीमती का विवाह किसी दूसरे पुरुष से करने का विचार किया। इस के लिए राजीमती की स्वीकृति लेना आवश्यक था। ___ इस लिए महाराज उग्रसेन रानी के साथ राजीमती के पास गए। वे कहने लगे- वेटी! अब तुम्हें अरिष्टनेमि का ध्यान हृदय से निकाल देना चाहिए। उन्होंने दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया है। यह अच्छा ही हुआ कि विवाह होने के पहले ही वे वापिस चले