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श्री
दान्त पाल सह, पाचवा भाग २६३
राजीमती ने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है । वे मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे। इतने में उन्होंने देखा कि राजीमती उसी कटोरे में वमन कर रही है । रथनेमि काँप उठे और आशङ्का करने लगे कि कहीं कटोरे में ऐसी वस्तु तो नहीं मिल गई जो हानिकारक हो ।
वे इस प्रकार सोच ही रहे थे कि राजीमती ने वमन से भरा हुआ कटोरा उसके सामने किया और कहा- राजकुमार ! लीजिए, इसे पी लीजिए ।
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वमन के कटोरे को देख कर रथनेमि पीछे हट गए। मॉखें क्रोध से लाल हो गई । श्रोठ फड़कने लगे । गरजते हुए कहने लगेराजीमती ! तुम्हें अपने रूप पर इतना घमण्ड है ? किसी भद्र पुरुष को बुला कर तुम उसका अपमान करती हो? क्या मुझे कुत्ता या कौया समझ रखा है जो वमन की हुई वस्तु पिलाना चाहती हो ?
राजीमती ने उपदेश देने की इच्छा से कुमार को शान्त करते हुए कहा - राजकुमार ! शान्ति रखिए। मैं आपके प्रेम की परीक्षा करना चाहती हूँ ।
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रथनेमि - क्या परीक्षा का यही उपाय १
राजीमती - हाँ ! यही उपाय है। यदि आप इसे पी जाते तो मैं समझती कि आप मुझे स्वीकार कर सकेंगे ।
रथनेमि - क्या मैं वमा हुआ पदार्थ पी जाऊँ ? राजीमती-वमा हुआ पदार्थ है तो क्या हुआ ? है तो वही जो आप लाए थे और जो आपको अत्यधिक प्रिय है। इसके रूप, रस या रंग में कोई फरक नहीं पड़ा है। केवल एक बार मेरे पेट तक जाकर निकल आया है।
रथनेमि - इससे क्या है तो नमन ही ?
राजीमती- मेरे साथ विवाह करने की इच्छा रखने वाले के लिए वमन पीना कठिन नहीं है ।