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श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला mmmmmmmmmmmmmwww. ~~ or . . . ~ ~ प्रशंसा की थी वे सभी गुण आप में मालूम पड़ रहे हैं। जब से उसने विवाह का प्रस्ताव रकवा मैं आपकी प्रतीक्षा में थी। __ राजीमती की बातें सुनते समय रथनेमि के हृदय में उत्तरोत्तर अधिक आशा का संचार हो रहा था। वह समझ रहा था राजीमती ने मुझे स्वीकार कर लिया है। उसने उत्तर दिया__राजकुमारी ! मैंने भापके सौन्दर्य और गुणों की प्रशंसा बहुत दिनों से सुन रक्खी थी। बहुत दिनों से मैंने आपको अपने हृदय की अधीश्वरी मान रक्खाथा,किन्तु भाई के साथ आपके सम्बन्ध की बात सुन कर चुप होना पड़ा। मालूम पड़ता है मेरा भाग्य बहुत तेज है इसी लिए नेमिकुमार ने इस सम्बन्ध को नामजर कर दिया। निश्चय होने पर भी मैं एक बार आपके मुंह से खीकृति के शब्द सुनना चाहता हूँ, फिर विवाह में देर न होगी।
राजीमती मन ही मन सोच रही थी- कामान्ध व्यक्ति अपने सारे विवेक को खो बैठता है। मेरे वाह्य रूप पर आसक्त होकर ये अपने भाई के नाते को भी भूल रहे हैं। भगवान् के त्याग को ये अपना सौभाग्य मान रहे हैं। मोह की विडम्बना विचित्र है । इस के वश में पढ़ कर मनुष्य भयङ्कर से भयङ्कर पाप करते हुए नहीं हिचकता । भगवान् के साथ मेरा विवाह हो जाने पर भी इनके हृदय से यह दुर्भावना दूर न होती और उसे पूर्ण करने के लिये ये किसी भी पाप से नहीं हिचकते।
राजीमती के कहने पर रथनेमि ने पेय वस्तु का कटोरा उसके सामने रख दिया और कहा-आपने बहुत ही तुच्छ वस्तु मंगवाई। मैं आपके लिये बड़ी से बड़ी वस्तु लाने के लिये तैयार हूँ।
राजीमती उस कटोरे को उठा कर पी गई साथ में पहले से पास रक्खी हुई उस दवा को भी खा गई जिसका प्रभाव तत्काल वमन था। कटोरे को पीते देख रथनेमि को पक्का विश्वास हो गया कि