________________
जीन सिरान्त बोल संग्रा, पांचवां भाग
१
मति देकर अपने और कुमार रथनेमि के जीवन को सुखमय बनाइए।
राजीमती को दूती की बात सुन कर आश्चर्य हुआ। दोनों भाइयों में इतना अन्तर देख कर वह चकित रह गई। __ साधारण स्त्री होती तो दूती का प्रस्ताव मजूर कर लेती या अनिच्छा होने पर अपना क्रोध दूती पर उतारती। उसे डाटती, फटकारती, दण्ड देने तक तैयार हो जाती। किन्तु राजीमती सती होने के साथ साथ बुद्धिमती भी थी। उसकी दृष्टि में पापी पर क्रुद्ध होने की अपेक्षा प्रयत्नपूर्वक उसे सन्मार्ग में लाना श्रेयस्कर था। उसने सोचा- दूती को फटकारने से सम्भव है बात बढ़ जाय
और उससे स्थनेमि के सन्मान में बट्टा लगे ।रयनेमि कुलीन पुरुष हैं। इस समय कामान्ध होने पर भी समझाने से सुमार्ग पर लाए जा सकते हैं। यह सोच कर उसने दूती से कहा-रथनेमि के इस प्रस्ताव का उत्तर मैं उन्हें ही देंगी। इस लिए तुम जानो और उन्हें ही भेज दो। साथ में कह देना कि वे अपनी पसन्द के अनुसार किसी पेय वस्तु को लेते श्रावें।
यद्यपि राजीमती ने यह उत्तर दूसरे अभिप्राय से दिया था, किन्तु इती ने उसे अपने प्रस्ताव की स्वीकृति ही समझा। वह प्रसन्न होती हुई स्थनेमि के पास गई और सारी बातें सुनादीं। रथनेमि ने भी उसे प्रस्ताव की स्वीकृति ही समझा।
रथनेमि ने सुन्दर वस्त्र और आभूपण पहने। बड़ी उमङ्गों के साथ पेय वस्तु तैयार कराई। रन खचित स्वर्ण थाल में कटोरा रख कर वहुमूल्य रेशमी वस्त्र से उसे ढक दिया। एक सेवक को साथ लेकर राजीमती के महल में पहुँचा। भावी सुखों की आशा में वह फूला न समाता था।
राजीमतीने रथनेमि का स्वागत किया। वह कहने लगी-आप का दर्शन करके मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । दूती ने आपकी जैसी