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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भोजन ! जिहा की क्षणिक तृप्ति के लिए इतनी बड़ी हत्या ! मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए कितना अन्धा हो जाता है ? अपनी क्षणिक लालसा के लिए हजारों प्राणियों का जीवन लेते हुए भी नहीं हिचकता । भला इन दीन अनाथ पशुओं ने किसी का क्या बिगाड़ा है ? फिर इन्हें बन्धन में क्यों डाला जाय ? इनके प्राण क्यों लिए जायँ ? क्या मनुष्य को अपनी इच्छातृप्ति के लिए दूसरों के मारण लेने का अधिकार है ? क्या यह न्याय है कि सवल निर्बल के माण ले ले ? क्या यह मानवता है ? नहीं, यह मानवता के नाम पर अत्याचार है । भयङ्कर अन्याय है । मेरा जीवन संसार में न्याय और सत्य की स्थापना के लिए है । फिर मैं अपने ही निमित्त से होने वाले इस अन्याय का अनुमोदन कैसे कर सकता हूँ ? मैं श्रहिंसाधर्म की प्ररूपणा करने वाला हूँ, फिर हिंसा को श्रेयस्कर कैसे मान सकता हूँ ?
भगवान् की इच्छा देख कर सारथी ने सभी प्राणियों को बन्धन मुक्त कर दिया। आनन्दित होते हुए पक्षी श्राकाश में उड़ गए। पशु वन की ओर भागे। भगवान् द्वारा अभयदान मिलने पर उन के हर्ष का पारावार न रहा ।
भगवान् ने प्रसन्न होकर अपने बहुमूल्य आभूषण सारथी को पारितोषिक में दे दिए और कहा- सखे ! हाथी को वापिस ले चलो। जिसके लिए इस प्रकार का महारम्भ हो ऐसा विवाद मुझे पसन्द नहीं है । सारथी ने हाथी को वापिस मोड़ लिया। वरात बिना वर की हो गई। चारों ओर खलबली मच गई।
महल की खिड़की से राजीमती यह दृश्य देख रही थी। उसके हृदय की आशङ्का उत्तरोत्तर तीव्र हो रही थी । नेमिकुमार के हाथी को वापिस होते देख कर वह बेहोश होकर गिर पड़ी । दासियाँ और सखियाँ घबरा गई।
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