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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग २५५ rrrrmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm . दूसरेदाहिने भङ्ग भी फड़कने शुरू हुए । मनुष्य को जितना अधिक हर्प होता है वह विघ्नों के लिए उतना ही अधिक शङ्काशील रहता है। राजीमती के हृदय में भी किसी अज्ञात भय ने स्थान कर लिया। उसने अङ्ग फड़कने की बात सखियों से कही। सखियों ने कई प्रकार से समझाया किन्तु राजीमती के हृदय से सन्देह दूर न हुआ। .
धन,शारीरिक बल या बुद्धि मात्र से कोई महापुरुष नहीं बनता। वास्तविक बड़प्पन का सम्बन्ध आत्मा से है। जिस व्यक्ति की आत्मा जितनी उन्नत तथा बलवान् है वह उतना ही बड़ा है। दूसरे के दुःरवों को अपना दुःख समझना, प्राणी मात्र से मित्रता रखना, हृदय में सरलता तथा सहृदयता का वास होना महापुरुपों के लक्षण हैं। महापुरुष सांसारिक भोगों में नहीं फँसते। __भगवान् अरिष्टनेमिकी वरात तोरणद्वार की ओर आरही थी। धीरे धीरे उस बाड़े के सामने पहुंच गई जिसमें मारे जाने वाले पशु पक्षी बंधे थे । वन्धन मे पड़ने के कारण वे विविध प्रकार से करुण क्रन्दन कर रहे थे। सारी वरात निकल गई किन्तु किसी का ध्यान उन दीन पशुओं की ओर न गया। सांसारिक भोगों में अन्धे बने हुए व्यक्ति दूसरे के सुख दुःख को नहीं देखते। अपनी क्षणिक तप्ति के लिए वे सारी दुनिया को भूल जाते हैं।
क्रमशः कुमार नेमिनाथ का हाथी वाड़े के सामने आया। पशुओं का विलाप सुन कर उनका हृदय करुणा से भर गया।
भगवान् ने सारथी से पूछा- इन दीन पशुओं को बन्धन में क्यों डाला गया है ?
सारथी ने उत्तर दिया-प्रभो! ये सवमहाराज उग्रसेन ने श्राप के विवाह में भोज देने के लिए इकहे किए हैं। यादवों का भोजन मांस के विना पूरा नहीं होता।
भगवान् ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा- मेरे विवाह में मांस